Tuesday, 24 December 2024

स्वयंसेवको के आपस में लिखे पत्र : संगठन - मंत्री द्वारा अपने मित्रो को लिखे पत्र का दूसरा अंश

 मुल्क का असली सपना

भिंड निवासी हमीत वारसी भोपाल नगर जनसंघ के संगठन मंत्री थे | वे कारागार में बहुत बीमार हो गये थे | उन्होंने अपने मित्रो को जो पत्र लिखे , उन पत्रों से दूसरा अंश यहाँ दिया जा रहा है |

उनके पत्र के अनुसार जेल में जिंदगी के लाभ ही लाभ था | विभिन्न विचारधाराए और मत होने के बावजूद , ऐसा लगता कि वे लोग राष्ट्रीय परिवार में रहकर आनंद उठा रहे थे | संघ के संकल्प तथा भावनाओ ने उन सभी को एक सूत्र में बाँध दिया था | कुछ कर गुजरने और हर चीज को ग्रहण करने की क्षमता भी इनमे थी | 

अतः संघ जैसी जमीन के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी का सौदा भी महँगा नही था और उनकी नज़रो में मुल्क का असली सपना संघ ही था यह भी उनके पत्र में लिखा था |

Monday, 23 December 2024

स्वयंसेवको के आपस में लिखे पत्र : संगठन - मंत्री द्वारा अपने मित्रो को लिखे पत्र का एक अंश

 जिंदगी उन्ही के लिए

भिंड निवासी हमीत वारसी भोपाल नगर जनसंघ के संगठन - मंत्री थे | वे कारागार में बहुत बीमार हो गये थे | उन्होंने अपने मित्रो को जो पत्र लिखे , उन पत्रों से एक अंश यहाँ दिया जा रहा है |

उन्होंने ने अपने पत्र में लिखा कि उनके मित्र का कहना सही था | उन्हें इन बन्धनों को तोडना होगा क्योकि उनकी जिंदगी उनका मिशन थी | उनका परिवार और उनके रिश्तेदार उनके दल के लोग थे , जिन्होंने उन्हें प्यार दिया था और उनकी जिंदगी उन्ही के लिए थी | इसपर किसी और का अधिकार नही था |

अतः सच्चाई का रास्ता काँटों और तकलीफों से भरा होता है , इसलिए अपने परिवार की जानकारी होना आवश्यक है यह भी उनके पत्र में लिखा था |  

Sunday, 22 December 2024

स्वयंसेवको के आपस में लिखे पत्र : रामकृष्ण हेगड़े द्वारा अर्कली नारायण को लिखा पत्र

 अन्तिम विजय सत्य की

रामकृष्ण हेगड़े बल्लारी के कारागार में थे | वहाँ से उन्होंने दिनांक 28 / 11 / 1976 को अर्कली नारायण को यह पत्र लिखा था | यह पत्र नही , स्वयंसेवक के ह्रदय का प्रतिबिंब दिखानेवाला दर्पण था |

उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि यह तो आत्मनिरीक्षण तथा आत्मशोधन का सुवर्ण अवसर ही उन्हें प्राप्त हुआ था | सत्य के मार्ग पर अग्रसर होना और सत्य के लिए लड़ना कभी व्यर्थ नहीं जाता | प्रत्येक की परीक्षा लेने की ईश्वर की यह एक रीति थी परन्तु यह निश्चित था कि अंत में सत्य की विजय होगी और असत्य हारेगा |

Sunday, 15 December 2024

पारिवारिक पत्र : स्वयंसेवक द्वारा अपनी पत्नी को लिखा पत्र

 दुःखो से ही सुखो का मूल्य

फतेहगढ़ केंद्रीय करागार से 6 / 2 / 1976 को स्वयंसेवक द्वारा अपनी पत्नी को लिखे गये पत्र का कुछ स्फूर्तिप्रद अंश इस प्रकार का था |

इन्हें अपनी पत्नी का पत्र मिला जिसे पढ़कर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई | उनके जैसी पत्नी पाकर वे धन्य हो गये थे | सुख – दुःख तो लगे रहेंगे परन्तु उन्होंने मुसीबत में हिम्मत नही हारी थी और उन्हें भी हिम्मत बंधायी थी | यदि जीवन में दुःख न आये तो सुखो का भी पता नही चलता |

उन्होंने लिखा कि क्या क्षमा मांगकर वे अपनी बदनामी करवाते ? और यदि उनकी बदनामी होती तो उनकी पत्नी की भी बदनामी होती | जैसे कुछ लोगो ने लिखकर दिया था , उनके अखबार में नाम भी छपे थे और वे समाज में मुह दिखने के लायक भी नही रहे थे |

उनकी पत्नी की तरफ से कोई पत्र नही था | इससे उनके मन में चिंता हुई कि कही उनके ऊपर कुछ गलत असर न हो गया हो किन्तु उनकी पत्नी के पत्र ने स्वयंसेवक का मन प्रसन्न कर दिया था |  

Thursday, 12 December 2024

पारिवारिक पत्र : गरुड़प्पा द्वारा अपने पुत्र को लिखा पत्र

 मैं धन्य हो गया

गरुड़प्पा एक सामान्य मजदूर थे | किसी प्रकार बड़ी गरीबी में वे अपना परिवार चला रहे थे | उनका पुत्र पुलकेशी बंगलौर कारागार में भारत सुरक्षा कानून के अंतर्गत बंदी था | सामान्यतः ऐसी परिस्थिति में पिता अपने पुत्र पर बहुत नाराज होते थे | परन्तु गरुड़प्पा असामान्य थे | उन्होंने अपने पुत्र को लिखा :-

उनका ह्रदय आनंद से भर गया था | माँ और पुत्र , दोनों ने सत्याग्रह करते हुए जो देश – कार्य किया था , उसे देख वे धन्य हो गये थे | अपने देश की थोड़ी भी सेवा करने का सौभाग्य उन्हें नही मिला था | न तो उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त हुई और न उनके पास धन था | प्रारंभ से ही उनका परिवार विकट आर्थिक परिस्थिति का सामना कर रहे थे | परन्तु उनके पुत्र की इस कृति से उन्हें अपार शांति मिली थी | अब उन्हें अपने भावी जीवन की रूपरेखा बनानी चाहिए | उस समय भारत माता को बड़ी कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा था | ऐसे समय में त्याग और बलिदान ही उनका कर्तव्य था | और अपने पुत्र से परिवार के प्रति उनकी कोई अपेक्षा नही थी | 

Wednesday, 11 December 2024

पारिवारिक पत्र : व्यंकटेश शानभाग द्वारा अपनी छोटी बहिन सुलोचना को लिखा पत्र

वनवास समाप्त हुआ

व्यंकटेश शानभाग ने बेलगाँव कारागार से 06 / 03 / 1977 को अपनी छोटी बहिन सुलोचना को कैसा काव्यमय पत्र लिखा था , देखिये |

शंखध्वनि गूँज उठी | धर्मयुद्ध की घोषणा हुई | विभीषण राम के पक्ष में आ गया था | सेतु बाँधा गया था | अब थोड़े ही दिनों में राम रावण युद्ध होगा और शीघ्र ही उनका वनवास समाप्त होगा ऐसा उनका मानना था | 


Monday, 9 December 2024

पारिवारिक पत्र : डा.मुल्ये की पत्नी द्वारा डा.मुल्ये को लिखा पत्र

 गर्दन ना झुके

डा. मुल्ये इंदौर ( म.प्र ) संघ के कार्यकर्ता थे | वे मीसा के अंतर्गत बंदी थे | उनके कुछ हितचिंतको ने उन्हें मुक्त कराने का प्रयास किया | शर्त केवल यही थी कि डॉक्टर साहब बीस सूत्री कार्यक्रम का सौम्य समर्थन लिख दे |

यह सूचना मिलने पर डा.मुल्ये की पत्नी ने जेल में बंद अपने पति को लिखा था कि उन्हें आशा थी कि वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे गर्दन नीची हो | वे हर तरह का कष्ट सहेंगे पर यह नही चाहेंगे कि वे उनकी खातिर उनके ऊपर कोई कलंक लगवाये | 

Friday, 6 December 2024

पारिवारिक पत्र : पिता द्वारा पुत्र को लिखा पत्र

सत्याग्रही पुत्र को पिता का पत्र 

अमरावती के डाक्टर पाठक आपातस्थिति की कृपा से अपनी नौकरी खो बैठे थे | परिस्थिति कठिन थी | फिर भी उनके पुत्र ने सत्याग्रह किया | वह कारागार में था |

डाक्टर महोदय ने उसे लिखा कि उन्हें सत्याग्रह का संचालन करते हुए बड़े परिश्रम उठाने पड़े अतः तुम्हे पढाई के लिए समय न मिल सका , यह वे भली – भांति जानते थे | परिणाम की चिंता न करे | एकाध वर्ष गवाना भी पड़ा तो कोई चिंता का विषय नही था |

Thursday, 5 December 2024

पारिवारिक पत्र : माखनलालजी द्वारा अपने भाई को लिखा पत्र

 बचपन से जो स्वप्न संजोया

विदर्भ के मलकापुर निवासी माखनलालजी ने अपने भाई को यह पत्र लिखा था |

कारावास में उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ नही थी | किसी को कोई गलतफ़हमी हो गयी हो और वे वहा हो ऐसा तो हुआ नही था | वे अपनी ध्येयनिष्ठा के कारण ही वहा आये थे और यह तो वे उनका सद्भाग्य समझते थे | बचपन में जो स्वप्न उन्होंने देखा था , उसी के परिणामस्वरूप यह बंधन आ गया था | जब वे कारागार से बाहर निकलेंगे , तब उनके मन में अश्रद्धा , अवहेलना , कटुता , तिरस्कार आदि विकारो का लवलेश भी नही रहेगा , इसकी उन्हें निश्चिंतता थी |  

Wednesday, 4 December 2024

स्वयं सेवकों के पत्र : भाऊसाहेब भुस्कुटे द्वारा बालासाहेबजी को पत्र

 मुझे पैरोल नही चाहिए

यह पत्र भाऊसाहेब भुस्कुटे ने स्वाक्षरी न करने के कारणों को सूचित करने हेतु जिला कारागार , होशंगाबाद से 30 / 04 / 1976 के दिन बालासाहेब को लिखा |

उन्होंने ने अपने पत्र में नमस्कार करके संबोधित करते हुए कहा कि चि. नाना ने उन्हें पत्र द्वारा सूचित किया कि उसने उनके लिए पैरोल का प्रार्थनापत्र भेजा था और वे भी उसी प्रकार से भेजे परन्तु उन्होंने अर्जी ना देने का निश्चय किया था | वह उनसे मिलने गये थे , तथा तैयार अर्जी भी लाये थे और उन्हें स्वाक्षरी ( हस्ताक्षर ) करने के लिए भी कहा था | परन्तु उन्होंने उसे स्वाक्षरी न करने के कारण बताये |

उन्होंने कारण बताते हुए कहा कि मित्रवर मधुकर ( सिवनी , मालवा ) के छोटे भाई सरकारी अस्पताल में , एकाएक हृदयगति अवरुद्ध होने से मृत्यु को प्राप्त हुए थे | पिपरिया के भी 60 वर्षीय मित्रवर शिवनाथ दीक्षित की 90 वर्षीय माताजी अस्वस्थ थी | हरिजी की कन्या भी चेचक और निमोनिया से बीमार थी | इन सभी को पैरोल नही मिला था | हर्दा के प्र.स.प. के 70 वर्षीय बाबूलालजी के 95 वर्षीय पिता अस्वस्थ थे फिर भी उन्हें नही छोड़ा और उनके पिता के निधन के 15-20 दिनों बाद बाबूलालजी को पैरोल मिला था |

लाखो निरपराध लोगो को कारागार में ठूँसना ही हीन वृत्ति की परिकाष्ठा थी | क्षितिज की ओर चलते रहने पर वह आगे- आगे बढता चला जाता वैसे ही यह वृत्ति हीन होती जा रही थी | ऐसी हीन वृत्तिधारी लोगो के सामने हाथ पसारना और “हमें पैरोल पर छोडिये” ऐसी प्रार्थना करना ह्रदय को जँचता न था |

जैसे क्षितिज असीम है , वैसे ही कांग्रेसियों की हीन वृत्ति असीम है , यह देखकर बड़ा क्रोध आता है | अंततः ये सब हमारे भाई है , इस विचार का मन पर गहरा प्रभाव होने के कारण ही मन को शांत करना संभव हो पाता ऐसा भी भाऊसाहेबजी ने अपने पत्र में लिखा |

कविकुल कालिदास ने कहा है :-

याचा मोघा वरमधिगुणे नाध में लब्धकामा |

भावार्थ , किसी गुणवान को की हुई याचना निष्फल हो गयी तो भी वह अच्छा है , परन्तु किसी दुर्गुणी से याचना की और वह फलवती हुई तो भी वह खराब है | 

Tuesday, 3 December 2024

स्वयं सेवकों के पत्र : देवरसजी द्वारा कुशाभाऊ ठाकरे को पत्र

 दृढ़ता रखे , सामर्थ्य बढाये

यह पत्र देवरसजी ने येरवडा ( यरवदा ) , पूना से 23 / 04 / 1976 के दिन कुशाभाऊ ठाकरे को पत्र लिखा |

उन्होंने लिखा कि वहा मध्यप्रदेश के अनेक प्रमुख लोग थे | ठीक से विचार – मानधन होकर भविष्य के बारे में सारा विचार होगा , ऐसी अपेक्षा थी | यद्यपि उस समय संकटावस्था थी , फिर भी इसमें से निकलने के उपरांत , नये जोश से , दुगने उत्साह से , ताबड़तोड़ काम में जुटना चाहिए |

उन्होंने अपने पत्र में दो श्लोक भी उल्लेखित किये :-

केला जरी पोत बल्केची खाले |

ज्वाला तरी ते वरती उफाले |

अर्थात् मशाल को जबरदस्ती नीचे करने पर भी उसकी ज्वाला ऊपर की ओर ही भभक उठती है | वैसा ही कार्यकर्ता का स्वभाव होना चाहिए |


 आकाशिच्या कु – हाडी आमुछया पडोत |

आघात सोसण्याचे सामर्थ्य मात्र द्यावे |

अर्थात् हमारे सिर पर आकाश से कुल्हाड़ियो की वर्षा क्यों न हो , उसकी हमें चिंता नहीं है | बस वह आघात सहन करने का सामर्थ्य हमें प्रदान करो | ऐसी हमारी तैयारी रहनी चाहिए |  

मराठी साहित्यकारों को राम शेवालकर जी ने पत्र लिखा

 उपाधियाँ लौटाये

एक विशेष कारण से यह पत्र राम शेवालकर ने 24 / 06 / 1976 के दिन मराठी साहित्यकारों को लिखा |

घटनात्मक मूलभूत स्वातंत्र्य के अपहरण को हुए 23 जून को एक वर्ष पूर्ण हो गया था , तथा ये स्वातंत्र्य फिर से निरपराध सामान्य जनता को प्राप्त होगा , ऐसा लग नही रहा था | ‘मीसा’ में जो संशोधन किया गया उससे आशा निराशा में बदल गयी थी | एक वर्ष तक जनता को घुटन का अनुभव करना पड़ा था |

राम शेवालकर जी ने दो बातो का प्रस्ताव रखा पहली , शासन के साथ सविनय कर शासकीय या अर्धशासकीय समिति के पद एवं सदस्यता से त्याग पत्र देना और दूसरी केंद्र अथवा राज्य शासन की ओर से कोई सम्मान – निदर्शक उपाधि का खेदपूर्वक परित्याग करना और साहित्यसेवी जनो से उसका अहिंसक निषेध करने की भी प्रार्थना की थी |

उन्हें आशा थी कि अधिकांश साहित्यकार इन दो बातो पर अमल करेगे और यदि वाड्मयोपासक एक साथ एक ही पत्रक पर हस्ताक्षर करेगे और भेजेगे तो वह अधिक परिणामकारक होगा | शायद वह सत्ता पर परिणाम न करे परुन्तु वह सालभर से मृतवत् सोये हुए मन में अवश्य प्रेरणा भरेगा और चैतान्यदायी प्रभाव करेगा |

 

 

Monday, 2 December 2024

बालासाहेब देवरस का दूसरा पत्र

 जो विश्व से कहती हो वह अपने देश में करो

यह पत्र बालासाहब देवरस ने श्रीमती गाँधी को 16 / 07 / 1976 के दिन लिखा था |

यह पत्र लिखने के कुछ दिन पूर्व श्रीमती गाँधी ने रूस , पूर्व जर्मनी एवं अफगानिस्तान की यात्रा की थी | वहा श्रीमती गाँधी ने अपने भाषण में कहा कि विश्व में जो तनाव की स्थिति विद्यमान थी , उसे कम करने के लिए प्रयत्नशील रहने का आश्वासन दिया था | उन्होंने आवाहन भी  दिया कि विभिन्न राजनितिक विचार तथा सामाजिक व्यवस्था रहते हुए भी सब में एकता रहनी चाहिए |

देवरस जी ने आगे लिखा कि जब वे विभिन्न राष्ट्रों के बीच का तनाव कम करने की सोचती थी , तब के राष्ट्र में जो तनाव विद्यमान था उसे कम करने का विचार उनके मन में आवश्य ही आया होगा | इस देश में प्रजातंत्र था और वह सदा बना रहेगा ऐसा श्रीमती गाँधी भी साग्रह कहती थी और प्रजातंत्र का अर्थ एकरूपता नहीं थी , प्रत्युत विविधता में एकता थी , यह भी श्रीमती गाँधी बार – बार कहती थी |

अतः मतभिन्नता के होते हुए , विभिन्न विचारवाली विभिन्न संस्थाओ तथा संस्थाओ तथा संगठनो के मध्य तनाव न रहे , यह भी श्रीमती गाँधी अवश्य मानेंगी | उन्होंने प्रार्थना करते हुए कहा कि संघ के संबंध में फैली हुए निराधार दुर्भावनाओ को दूर हटाकर श्रीमती गाँधी संग को ऊपर उठा , संघ के विषय में पुनर्विचार करें और संघ पर लगी पाबंदी उठाए |  

Friday, 29 November 2024

मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण को ना. ग. गोरे का पत्र

निजामशाही के विरोध में क्यों लड़े ?

यह पत्र ना. ग. गोरे ने मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण को लिखा था 

उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि उस समय मुख्यमंत्री जी की चमड़ी किसी बालक की चमड़ी से भी कोमल बन गई थी , इसलिए केवल पिछले डेढ़ सौ वर्ष के इतिहास का स्मरण करा देने से अथवा " समाचारपत्रों की पूर्व परीक्षा अंग्रेजों ने कभी नहीं की थी " , इतना भर कह देने पर मुख्यमंत्री ने " हाय राम , लहूलुहान कर दिया " , ऐसा ढोंग रचा था । उन्होंने ( मुख्यमंत्री ) निजाम की राज्यपद्धति निकट से देखी थी । उनका बंबई का व्याख्यान असंयमित था , बेताल था , ऐसा यदि आपका ( मुख्यमंत्री ) का मत था तो न्यायाधीश के सामने  उन्हें खड़ा क्यों नहीं करते ?

उससे संयमशील भाषण की व्याख्या तो कम से कम सब जान जाते .......

उन्होंने आगे पत्र में लिखा कि इन सब बंधनों का मूक पालन जनता को करना चाहिए , ऐसी यदि मुख्यमंत्री की इच्छा थी तो वे निजामशाही के विरोध में क्यों खड़े हो गए थे ?

अतः वे इस प्रश्न का उन्हें उत्तर दे , ऐसी ना. ग. गोरे जो की मुख्यमंत्री जी से प्रार्थना थी ।

Wednesday, 27 November 2024

शंकरराव चव्हाण को मृणाल गोरे का पत्र

 जनता का अपमान न करे

मृणाल गोरे ने यह पत्र शंकरराव चव्हाण को लिखा था |

उन्होंने पत्र में लिखा था कि उस समय की दंभपूर्ण असत्य प्रचार – यात्रा में बुद्धिवादी लोगों को सहभागी हो जाना चाहिए – ऐसी उनकी केवल इच्छा ही नही आज्ञा थी | इंदिरा गाँधी की हुकुमशाही के सम्मुख गर्दन झुकानेवाले लोग इस देश में थे , इसका इस राष्ट्र को यथार्थ अभिमान था |

मृणाल गोरे ने एक बात की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा कि जितनी चापलूसी शंकरराव चव्हाण कर रहे थे , वे इतना अवश्य समझ ले कि जब उनकी आवश्यकता नहीं रहेगी तब किसी क्षुद्र जंतु के समान चिमटे में पकड़कर बाहर फेंक दिया जायेंगा |

अतः जब तक सिर ऊँचा कर अवज्ञा करनेवाले लोग इस देश में है , तब तक ही यह भारत कहलाने योग्य रहेगा , यह शब्द भी मृणाल गोरे के पत्र में लिखे हुए थे |

Tuesday, 26 November 2024

सिनेमा कलाकारों को नानाजी देशमुख का पत्र

 कला का उपयोग देश बचाने में करे

देश की गंभीर परिस्थिति ने नानाजी देशमुख को यह पत्र लिखकर सिनेमा कलाकारों तक पहुचने के लिए बाध्य किया था क्योंकि अपने देश के इतिहास में एक बड़ा विचित्र समय आ गया था ।

नानाजी ने सिनेमा कलाकारो को मित्र कहकर संबोधित करते हुए लिखा कि उन्होंने समाज में एक विशेष स्थान प्राप्त किया था और वे युवाओं के गतिनियामक भी थे | सामान्य जनता उनसे ही चाल - ढाल सीखती थी । वे विशाल जन समूह का मनोरंजन करते साथ ही जनता के मन का बोझ भी हल्का करते थे ।

नानाजी ने उनसे प्रश्न करते हुए लिखा कि क्या वे लोग अपनी दृष्टि को मनोरंजन तक सीमित रखकर जनता को केवल जीवन की समस्याओ को टालना ही सिखाएंगे ?

समय की मांग थी कि कलाकारों को निराशा के स्थान पर विचारपूर्ण आशा उत्पन्न करनी चाहिए । यदि सब कंधे से कंधा भिड़ाकर धंसे हुए पहिए को ऊपर नहीं उठाते तो संपूर्ण देश का रथ तानाशाही और विदेशी अधिकार के कीचड़ में धसकर रह जायेगा ।

श्रीमती गांधी की तानाशाही की एक विशेषता यह थी कि उसके मूल में किसी भी प्रकार का ध्येयवाद नहीं था । सत्तालालस के कारण उन्होंने अपने देश को सोवियत संघ के पंजों में बहुत अधिक फंसा लिया था । राष्ट्रभर में अब अंधेरा छाया हुआ था । तानाशाही और विदेशी पकड़ की गर्त में वह लुढ़कता हुआ चला जा रहा था ।

उनका कहना था कि यदि वे निष्क्रिय बनकर बैठे रहे तो आने वाली पीढ़ी उन सब को कोसेगी और वह न्यायसंगत भी होगा क्योंकि उस समय की निष्क्रियता आनेवाली पीढ़ियों की स्वतंत्रता को पंगु बना देगी ।

अंत में उन्होंने कलाकारो से अनुरोध भी किया कि जनता के चलाए युद्ध में वे भी सहभागी बने ।

Monday, 25 November 2024

श्रीमती गाँधी को जयप्रकाशजी का पत्र

 प्रधानमंत्री “सहायता-निधि” से सहायता लेने से इनकार

यह पत्र जयप्रकाश जी ने श्रीमती गाँधी को 11 / 06 / 1976 को कैम्प मुंबई से  उनके डायलिसिस यंत्र खरीदने के लिए “सहायता-निधि” से जो नब्बे हज़ार रूपये भेजे गये  थे , उस संदर्भ में  लिखा था | उन्होंने श्रीमती गाँधी को विश्वास दिलाते हुए लिखा कि वे इस पत्र को अन्यथा ना ले और उनपर सौजन्यहीनता तथा कृतघ्नता का आरोप ना लगाए , उनके मन में श्रीमती गाँधी के प्रति तनिक भी निरादर की भावना नहीं थी | 

कुछ सप्ताह पूर्व प्रोफेसर पी.बी धर की सूचनानुसार राधाकृष्णजी  ने एक मित्र को भेजा था और जयप्रकाशजी से पुछवाया था कि क्या वे श्रीमती गाँधी के द्वारा दिया गया आर्थिक योगदान स्वीकार करेंगे ? उन्होंने अपनी सम्मति भी दी परुन्तु उस समय वे ये नही जानते थे कि यह पैसे उन्हें प्रधानमंत्री सहायता  निधि द्वारा दिए जाने वाला था , वे तो यही मानकर चल रहे थे कि श्रीमती गाँधी अपनी जेब से यह सहायता दे रही थी , और थोडा विचार करने पर उन्हें समझ आया कि इतनी बड़ी रकम अपनी जेब से देना संभव नही था |

उन्होंने उस समय की स्थिति समझाते हुए लिखा कि “सहायता-निधि” की राशी पहुचने से पहले ही जनता का दिया हुआ द्रव्य तीन लाख से ऊपर पहुच गया था जिससे एक डायलिसिस यंत्र और उसकी अन्य पूरक वस्तुए , तथा साल भर की आवश्यक प्रतीत होने वाली वस्तुए भी खरीद ली गयी थी | अतः अगले साल – दो साल तक प्रतिमास खर्च करने के लिए भी  , वही द्रव्य प्रर्याप्त था |

उन्होंने आगे दो मुद्दों पर रोशनी डालते हुए लिखा कि एक यह कि  समिति में  केवल छोटी रकमे स्वीकार की जाती और दूसरा यह कि “सहायता-निधि” से राधाकृष्ण जी के पास धनावेश आने के पूर्व ही आवश्यकता से ज्यादा ही  धन संग्रह हो गया था इसलिए  “ जयप्रकाश आरोग्य निधि समिति “ ने प्रकट घोषित कर निधि – संकलन बंद कर दिया था | ऐसी परिस्थिति में “सहायता-निधि” की ओर से भेजी गयी इतनी बड़ी रकम स्वीकार करना उनके लिए उचित न था |

अंत में वे लिखते है कि वे राधाकृष्ण जी को सूचित कर देंगे कि वे “सहायता-निधि” से प्राप्त धनावेश वापस लौटा दे और श्रीमती गाँधी से आग्रह भी किया कि जिन्हें इस राशी की अधिक आवश्यकता हो उनके लिए इस “सहायता-निधि” का पैसा खर्च करे | अतः वे कृतज्ञ थे , जो श्रीमती गाँधी ने उनके स्वस्थ्य के विषय में चिंता दिखाई |

 

Sunday, 24 November 2024

विश्वेशतीर्थ स्वामीजी का दूसरा पत्र

 अप्रियस्य च पथ्यस्य

यह पत्र सन्यासी विश्वेशतीर्थ स्वामीजी ने अत्यधिक खेद के साथ  12 / 7 / 1975 को लिखे गये पत्र का श्रीमती गाँधी की ओर से कोई उत्तर न मिलने पर लिखा |

वे अपने पत्र के माध्यम से देश में हो रही कृतियों पर रोशनी डालना चाहते थे | उनके ह्रदय में श्रीमती गाँधी और राष्ट्र दोनों के लिए समान आदर की भावना थी परन्तु वे जानते थे कि उनके इस पत्र से श्रीमती गाँधी के मन में बहुत क्रोध उत्पन्न होगा | वे अपनी कर्तव्यभावना से इस निष्कर्ष पर पहुचे कि उन्हें निष्पक्ष होकर बोलना चाहिए , फिर वह कितना भी कटु क्यों न लगे | उनकी हार्दिक इच्छा ऐसी थी कि जो बीत गया सो बीत गया अब श्रीमती गाँधी को जनतंत्र का नाटक छोड़ जो स्वातंत्र्य उन्हें प्राप्त था वही जनता को प्रदान करना चाहिए |  

उन्होंने श्रीमती गाँधी से प्रश्न करते हुए लिखा कि क्या श्रीमती गाँधी भारत को नया हंगरी और चेकोस्लोवाकिया बनाना चाहती है ? क्युकि जब शेख मुजीबुर्हमान ने समाचार पत्रों का स्वातंत्र्य छीन जनता पर एकपक्षीय एकाधिकार लादा था उसके दुखदायी परिणाम बंगला देश भुगत रहा था जिससे यह स्पष्ट था कि एक बार यदि जनतंत्र की श्रेष्ठ उच्च परंपरा टूट जाए तो उसकी पुनः स्थापना करना बहुत कठिन हो जाता है |

उन्होंने पत्र में श्रीमती के भाषण में प्रयोग हो रहे शब्दों पर ध्यान देने की बात भी कही क्युकि सन् 1959 में पकिस्तान के तानाशाह अयूबखान ने जिन शब्दों का प्रयोग किया था , श्रीमती गाँधी भी जनतंत्र तथा विरोधी पक्ष के संबंध में ठीक उन्ही शब्दों का प्रयोग कर रही थी | सन्यासी ने श्रीमती गाँधी से आशा करते हुए लिखा कि वे पकिस्तान और बंगला देश की घटनाओ से कुछ सबक सीखेंगी और जनतांत्रिक परम्पराओ को बचाएंगी |

अंत में उन्होंने एक संस्कृत श्लोक को भी सुभाषित किया :

सुलभाः पुरुषाः राजन्ं प्रियवादिनः |

अप्रियस्यच पथ्यस्य वक्ताश्रोता च दुर्लभाः ||

अर्थात :– मुँह पर मीठा बोलने वाले बहुत लोग हुआ करते है | परन्तु अप्रिय होने पर भी जो हितकर हो , ऐसा बोलनेवाले न वक्ता मिलते है और न ही सुननेवाले श्रोता मिलते है | 

Friday, 22 November 2024

श्रीमती गाँधी को विश्वेशतीर्थ स्वामीजी का पत्र

 सन्यासी ने भिक्षा मांगी

यह पत्र विश्वेशतीर्थ स्वामीजी ने श्रीमती गाँधी ( इंदिरा गाँधी ) को 12 जुलाई 1975 को उडुपी से लिखा था | वे एक संयासी और पेजावर धर्ममठ के प्रमुख ( मठाधीश ) थे और सदैव मानव सेवा तथा पूर्णतः ईश्वरभक्ति में लगे रहते थे |

उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि उन्हें किसी की प्रसन्नता – अप्रसन्नता से या राजी – नाराजी से विचलित होने का कोई कारण नही था | वे श्रीमती गाँधी का बहुत आदर करते थे और उनकी ओर बड़े विश्वास के साथ देखते थे परन्तु देश के अगणित नेताओ को कारागार में डाल दिया गया और सामान्य जनता एवं समाचार – पत्रों की स्वातंत्र्य का गला घोंट स्वामीजी के विश्वास पर एक अनपेक्षित क्रूर आघात किया गया |

जनतंत्र और तानाशाह में भेद करते हुए सन्यासी ने लिखा कि जनतंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए विरोधको पर कुछ मात्र में अंकुश रखना मान्य था परन्तु समाचार पत्रों को केवल शासन – पुरस्कृत समाचार प्रकाशित करने और जनता की सच्ची भावनाओ को प्रकाशित न करने के लिए बाध्य करना , इस तरह की कृतिया जनतंत्र को जड़मूल से उखाड़नेवाली थी |

उन्होंने सन् 1957 ईसवी की एक घटना पर रोशनी डालते हुए लिखा कि जब श्रीमती गाँधी कांग्रेस की अध्यक्ष थी तब केरल में कम्यूनिस्टो का मंत्रिमंडल था जिसे उखाड़ फेकने में श्रीमती गाँधी ने क्रान्तिप्रवण जनता का नेतृत्व किया और उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई थी , वही कृतिया जब विरोधी पक्ष अपना रहा था , तो उन पर जनतंत्र – विरोधी होने का आरोप विचित्र जान पड़ता था |

उन्होंने परिस्थितियो को देखकर संवेदना व्यक्त करते हुए सुझाव दिया कि शासकीय और विरोधी पक्षों के लिए एक समान आचरण – विधान बनना आवश्यक था | दोनों ओर को नेताओ को बैठकर एक निम्नवाली बनाना चाहिए जिसमे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जनतंत्र दोनों सुरक्षित रहे |

अंत में उन्होंने जनता की स्वातंत्र्य और जनतंत्र के संरक्षण की भिक्षा मांगते हुए लिखा कि वे एक सन्यासी एवं भिक्षु थे और भिक्षा मांगना उनकी आदत रहेंगी |

Thursday, 21 November 2024

श्रीमती गाँधी को मधु जी का पत्र

 महारानी इंदिरा का भव्य स्वागत

“ श्रीमती इंदिरा गाँधी 24 अक्टूम्बर को अजमेर आएंगे , उनका भव्य स्वागत किया जाएगा और मार्ग में गुलाब के फूल बिछाए जायेंगे “ यह खबर पढ़कर मधु जी ने श्रीमती गाँधी को पत्र लिखा |

उन्होंने अपने पत्र में आशंका जताते हुए लिखा कि जब मुगले आज़म ने अजमेर का सफ़र चिलचिलाती धुप में नंगे पाँव किया और अग्रेंजो के बड़े लाट साहब के लिए भी ऐसा स्वागत नही हुआ तो  देश की दो – तिहाई कंगाल जनता की नेता श्रीमती गाँधी की शान का इतना अभद्र प्रदर्शन क्यों ?

उनका मानना था कि श्रीमती गाँधी और उनके सहयोगियों की गुलाब बिछी सड़क पर शोभायात्रा की कल्पना भी श्रीमती गाँधी को अच्छी नही लगेंगी क्युकि फूलो को पौधो पर देख मन प्रसन्न होता है , त्यागी उन्हें देवताओ पर चढ़ाते है , फूलदानी पर वे अच्छे लगते है और हमारे यहा औरते भी फूलो से अपनी – अपनी चोटी को सुशोभित करती है |

अंत में उन्होंने भगवान से प्रार्थना करते हुए लिखा कि श्रीमती गाँधी को ऐसे चापलूसों से भगवान बचाए रखने की कृपा करे |  

डा. कृष्णाबाई निंबकर का उनकी सहपाठी को पत्र

 यह आपका महाप्रसाद है 

यह पत्र श्रीमती गाँधी की सहपाठी , स्वतंत्रता सेनानी एवं सामाजिक कार्यक्रत्री डा. कृष्णाबाई निंबकर ने 23 जून 1976 को पूना से लिखा था |

उनके पत्र के अनुसार श्रीमती गाँधी के अच्छे चालचलन के लिए “तास” और “प्रावदा” नाम के रशियन पत्रों में उनकी बहुत प्रशंसा की गयी थी और सी.पी.आई ने भी उनकी रीति – निति एवं कार्यक्रमों को बहुत सहारा था | परन्तु आपातकाल की वजह से जनता उन पर से अपना विश्वास खो चुकी थी और सामान्य जनता उनकी ओर मित्रत्व की भावना से नही देख सकती और  पूर्णतः श्रीमती गाँधी से कट गयी थी |

कोई भला इंसान यदि उन्हें सत्य और निष्पक्ष बाते सुनाना चाहे तो उन तक नही पहुच सकती क्युकि वे पूर्णतः चाटुकारों , खुशामद खोरो तथा विदेशी गुप्तचरों से घिरी हुए थी | उन्होंने श्रीमती गाँधी को अपना ह्रदय टटोलकर देखने के लिए कहा क्युकि उन्होंने उच्च न्यायलय का चुनाव विषयक निर्णय न मानने का  पाप किया और जनता के सामने बहुत खराब उदहारण पेश किया था | श्रीमती गाँधी ने अपनी सत्ता का दुरूपयोग किया लेकिन बताया ऐसे जैसे वे भारतीय जनता की हितेशी हो और उनकी तुलना हिटलर से भी की गई |

उन्होंने  आगे अपने पत्र में लिखा था कि जैसे - जैसे श्रीमती गाँधी सत्य से अधिकाधिक दूर हटती जा रही थी , वैसे वैसे उनका गढ़  ढ़ह रहा था और उनकी नैतिक दृष्टि दुर्बल होती जा रही थी | श्रीमती गाँधी ने जो स्वांग रचा था उसके बारे में पत्र मे कथित है कि जब झुठाई का पर्दाफाश होगा , स्वांग उतर जाएगा और अधिकार समाप्त होगा , तब श्रीमती गाँधी को किसी की सहायता की आवश्यकता प्रतीत होगी और सद्विवेकबुद्धि से समझौता करना पड़ेगा | उस समय परमेश्वर के सम्मुख उन्हें पुरे सत्य के साथ पेश होना पड़ेगा |

परमेश्वर निश्चित ही श्रीमती गाँधी को क्षमा करे परन्तु जनता उन्हे क्षमा नही कर पायेंगे और जनता उनका मामला इतिहास को सौंप देंगी |

Wednesday, 20 November 2024

प्रभाकर शर्मा जी का अंतिम पत्र

 अंतरात्मा की हत्या


यह पत्र एक समर्पित सर्वोदयी कार्यकर्ता प्रभाकर शर्मा ने 11 अक्टूम्बर 1976  के दिन श्रीमती गाँधी (इंदिरा गाँधी ) को अपने आत्मदाह से पहले लिखा और 14 / 10 / 1976  को परवान में आत्मदहन कर लिया था | यह पत्र उन्होंने बंबई के मुख्यमंत्री और उनके मित्रो को भेजा था क्युकि वे जानते थे कि आपातकाल में  इस तरह का पत्र लिखना भी अपराध था |

आपातकाल को निंदनीय , जंगली और धिककार्निय बताते हुए उन्होंने पत्र में लिखा कि श्रीमती गाँधी ने अपने हाथ में सत्ता बनाये रखने के लिए भारत को एक अँधेरी गुफा ( आपातकाल ) की ओर धकेल दिया था और इसके लिए उन्होंने पुलिस तथा सेना को जनता के खिलाफ प्रयोग किया | उन्होंने अपने में यह भी लिखा कि श्रीमती गाँधी को अपने अनुतापयुक्त ह्रदय से , भारत की जनता से उनके अक्षम्य अपराधो के लिए , माफ़ी मांगनी चाहिए और भावी पिढ़िया आपातकाल को हमेशा एक अपराध और इसका समर्थन करने वालो दोषी के रूप में देखेंगी |

आपातकाल के दौरान ईश्वर और मानवता को भूल केन्द्रीय सरकार ने “जयप्रकाश जिंदाबाद” कहने या उनका समर्थन करने पर लोगो को गिरफ्तार कर लिया और अखबारो से लेखन – स्वतंत्रता  भी छीन ली और पूज्य विनोबाजी के आमरण अनशन के समाचार को भी दबा दिया गया | सारांश में कहा जाए तो श्रीमती गाँधी की मर्झी ही धर्मशास्त्र , इच्छा ही संस्कृति , गर्वोंमाद ही क़ानून , हुंकार ही न्याय और जो पाठ वे पढाये वही नीतिशास्त्र |

उन्होंने आपातकाल को स्वत्रंता और मानवता का गला घोटने वाला कदम बताया और गांधीजी के विचारो से मार्गदर्शन लेते हुए कहा कि स्वतंत्रता के बीना जीवन व्यर्थ है और देश को रचनात्मक कार्यो और अहिंसक शक्ति बनाने की भी बात कही थी |

अपने पत्र के माध्यम से उन्होंने देश की जनता से आग्रह भी किया कि शहरी वर्ग और ग्रामीण वर्ग को आपस में एक जुट होकर अहिंसक और रचनात्मक कार्यो में जुटना होगा |

अतः उनका बलिदान हमेशा स्वतंत्र और लोकतंत्र के लिए प्रेरणादायी रहेगा |