उपाधियाँ लौटाये
एक विशेष कारण से यह पत्र राम शेवालकर ने 24 / 06
/ 1976 के दिन मराठी साहित्यकारों को लिखा |
घटनात्मक मूलभूत स्वातंत्र्य के अपहरण को हुए 23
जून को एक वर्ष पूर्ण हो गया था , तथा ये स्वातंत्र्य फिर से निरपराध सामान्य जनता
को प्राप्त होगा , ऐसा लग नही रहा था | ‘मीसा’ में जो संशोधन किया गया उससे आशा
निराशा में बदल गयी थी | एक वर्ष तक जनता को घुटन का अनुभव करना पड़ा था |
राम शेवालकर जी ने दो बातो का प्रस्ताव रखा पहली
, शासन के साथ सविनय कर शासकीय या अर्धशासकीय समिति के पद एवं सदस्यता से त्याग
पत्र देना और दूसरी केंद्र अथवा राज्य शासन की ओर से कोई सम्मान – निदर्शक उपाधि
का खेदपूर्वक परित्याग करना और साहित्यसेवी जनो से उसका अहिंसक निषेध करने की भी
प्रार्थना की थी |
उन्हें आशा थी कि अधिकांश साहित्यकार इन दो बातो
पर अमल करेगे और यदि वाड्मयोपासक एक साथ एक ही पत्रक पर हस्ताक्षर करेगे और भेजेगे
तो वह अधिक परिणामकारक होगा | शायद वह सत्ता पर परिणाम न करे परुन्तु वह सालभर से
मृतवत् सोये हुए मन में अवश्य प्रेरणा भरेगा और चैतान्यदायी प्रभाव करेगा |
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