जो विश्व से कहती हो वह अपने देश में करो
यह पत्र बालासाहब देवरस ने श्रीमती गाँधी को 16 /
07 / 1976 के दिन लिखा था |
यह पत्र लिखने के कुछ दिन पूर्व श्रीमती गाँधी ने
रूस , पूर्व जर्मनी एवं अफगानिस्तान की यात्रा की थी | वहा श्रीमती गाँधी ने अपने
भाषण में कहा कि विश्व में जो तनाव की स्थिति विद्यमान थी , उसे कम करने के लिए
प्रयत्नशील रहने का आश्वासन दिया था | उन्होंने आवाहन भी दिया कि विभिन्न राजनितिक विचार तथा सामाजिक
व्यवस्था रहते हुए भी सब में एकता रहनी चाहिए |
देवरस जी ने आगे लिखा कि जब वे विभिन्न राष्ट्रों के बीच का तनाव कम करने की सोचती थी , तब के राष्ट्र में जो तनाव विद्यमान था उसे कम करने का विचार उनके मन में आवश्य ही आया होगा | इस देश में प्रजातंत्र था और वह सदा बना रहेगा ऐसा श्रीमती गाँधी भी साग्रह कहती थी और प्रजातंत्र का अर्थ एकरूपता नहीं थी , प्रत्युत विविधता में एकता थी , यह भी श्रीमती गाँधी बार – बार कहती थी |
अतः मतभिन्नता के होते हुए , विभिन्न विचारवाली
विभिन्न संस्थाओ तथा संस्थाओ तथा संगठनो के मध्य तनाव न रहे , यह भी श्रीमती गाँधी
अवश्य मानेंगी | उन्होंने प्रार्थना करते हुए कहा कि संघ के संबंध में फैली हुए निराधार
दुर्भावनाओ को दूर हटाकर श्रीमती गाँधी संग को ऊपर उठा , संघ के विषय में
पुनर्विचार करें और संघ पर लगी पाबंदी उठाए |
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