निजामशाही
के विरोध में क्यों लड़े ?
यह पत्र ना. ग. गोरे ने मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण को लिखा था ।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि उस समय मुख्यमंत्री जी की चमड़ी किसी बालक की चमड़ी से भी कोमल बन गई थी , इसलिए केवल पिछले डेढ़ सौ वर्ष के इतिहास का स्मरण करा देने से अथवा " समाचारपत्रों की पूर्व परीक्षा अंग्रेजों ने कभी नहीं की थी " , इतना भर कह देने पर मुख्यमंत्री ने " हाय राम , लहूलुहान कर दिया " , ऐसा ढोंग रचा था । उन्होंने ( मुख्यमंत्री ) निजाम की राज्यपद्धति निकट से देखी थी । उनका बंबई का व्याख्यान असंयमित था , बेताल था , ऐसा यदि आपका ( मुख्यमंत्री ) का मत था तो न्यायाधीश के सामने उन्हें खड़ा क्यों नहीं करते ?
उससे
संयमशील भाषण की व्याख्या तो कम से कम सब जान जाते .......
उन्होंने
आगे पत्र में लिखा कि इन सब बंधनों का मूक पालन जनता को करना चाहिए , ऐसी यदि मुख्यमंत्री की इच्छा थी तो वे
निजामशाही के विरोध में क्यों खड़े हो गए थे ?
अतः
वे इस प्रश्न का उन्हें उत्तर दे , ऐसी
ना. ग. गोरे जो की मुख्यमंत्री जी से प्रार्थना थी ।
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