जनता का अपमान न करे
मृणाल गोरे ने यह पत्र शंकरराव चव्हाण को लिखा था
|
उन्होंने पत्र में लिखा था कि उस समय की दंभपूर्ण
असत्य प्रचार – यात्रा में बुद्धिवादी लोगों को सहभागी हो जाना चाहिए – ऐसी उनकी
केवल इच्छा ही नही आज्ञा थी | इंदिरा गाँधी की हुकुमशाही के सम्मुख गर्दन
झुकानेवाले लोग इस देश में थे , इसका इस राष्ट्र को यथार्थ अभिमान था |
मृणाल गोरे ने एक बात की ओर ध्यान आकर्षित करते
हुए लिखा कि जितनी चापलूसी शंकरराव चव्हाण कर रहे थे , वे इतना अवश्य समझ ले कि जब
उनकी आवश्यकता नहीं रहेगी तब किसी क्षुद्र जंतु के समान चिमटे में पकड़कर बाहर फेंक
दिया जायेंगा |
अतः जब तक सिर ऊँचा कर अवज्ञा करनेवाले लोग इस
देश में है , तब तक ही यह भारत कहलाने योग्य रहेगा , यह शब्द भी मृणाल गोरे के पत्र
में लिखे हुए थे |
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