Friday, 22 November 2024

श्रीमती गाँधी को विश्वेशतीर्थ स्वामीजी का पत्र

 सन्यासी ने भिक्षा मांगी

यह पत्र विश्वेशतीर्थ स्वामीजी ने श्रीमती गाँधी ( इंदिरा गाँधी ) को 12 जुलाई 1975 को उडुपी से लिखा था | वे एक संयासी और पेजावर धर्ममठ के प्रमुख ( मठाधीश ) थे और सदैव मानव सेवा तथा पूर्णतः ईश्वरभक्ति में लगे रहते थे |

उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि उन्हें किसी की प्रसन्नता – अप्रसन्नता से या राजी – नाराजी से विचलित होने का कोई कारण नही था | वे श्रीमती गाँधी का बहुत आदर करते थे और उनकी ओर बड़े विश्वास के साथ देखते थे परन्तु देश के अगणित नेताओ को कारागार में डाल दिया गया और सामान्य जनता एवं समाचार – पत्रों की स्वातंत्र्य का गला घोंट स्वामीजी के विश्वास पर एक अनपेक्षित क्रूर आघात किया गया |

जनतंत्र और तानाशाह में भेद करते हुए सन्यासी ने लिखा कि जनतंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए विरोधको पर कुछ मात्र में अंकुश रखना मान्य था परन्तु समाचार पत्रों को केवल शासन – पुरस्कृत समाचार प्रकाशित करने और जनता की सच्ची भावनाओ को प्रकाशित न करने के लिए बाध्य करना , इस तरह की कृतिया जनतंत्र को जड़मूल से उखाड़नेवाली थी |

उन्होंने सन् 1957 ईसवी की एक घटना पर रोशनी डालते हुए लिखा कि जब श्रीमती गाँधी कांग्रेस की अध्यक्ष थी तब केरल में कम्यूनिस्टो का मंत्रिमंडल था जिसे उखाड़ फेकने में श्रीमती गाँधी ने क्रान्तिप्रवण जनता का नेतृत्व किया और उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई थी , वही कृतिया जब विरोधी पक्ष अपना रहा था , तो उन पर जनतंत्र – विरोधी होने का आरोप विचित्र जान पड़ता था |

उन्होंने परिस्थितियो को देखकर संवेदना व्यक्त करते हुए सुझाव दिया कि शासकीय और विरोधी पक्षों के लिए एक समान आचरण – विधान बनना आवश्यक था | दोनों ओर को नेताओ को बैठकर एक निम्नवाली बनाना चाहिए जिसमे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जनतंत्र दोनों सुरक्षित रहे |

अंत में उन्होंने जनता की स्वातंत्र्य और जनतंत्र के संरक्षण की भिक्षा मांगते हुए लिखा कि वे एक सन्यासी एवं भिक्षु थे और भिक्षा मांगना उनकी आदत रहेंगी |

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