Thursday, 21 November 2024

डा. कृष्णाबाई निंबकर का उनकी सहपाठी को पत्र

 यह आपका महाप्रसाद है 

यह पत्र श्रीमती गाँधी की सहपाठी , स्वतंत्रता सेनानी एवं सामाजिक कार्यक्रत्री डा. कृष्णाबाई निंबकर ने 23 जून 1976 को पूना से लिखा था |

उनके पत्र के अनुसार श्रीमती गाँधी के अच्छे चालचलन के लिए “तास” और “प्रावदा” नाम के रशियन पत्रों में उनकी बहुत प्रशंसा की गयी थी और सी.पी.आई ने भी उनकी रीति – निति एवं कार्यक्रमों को बहुत सहारा था | परन्तु आपातकाल की वजह से जनता उन पर से अपना विश्वास खो चुकी थी और सामान्य जनता उनकी ओर मित्रत्व की भावना से नही देख सकती और  पूर्णतः श्रीमती गाँधी से कट गयी थी |

कोई भला इंसान यदि उन्हें सत्य और निष्पक्ष बाते सुनाना चाहे तो उन तक नही पहुच सकती क्युकि वे पूर्णतः चाटुकारों , खुशामद खोरो तथा विदेशी गुप्तचरों से घिरी हुए थी | उन्होंने श्रीमती गाँधी को अपना ह्रदय टटोलकर देखने के लिए कहा क्युकि उन्होंने उच्च न्यायलय का चुनाव विषयक निर्णय न मानने का  पाप किया और जनता के सामने बहुत खराब उदहारण पेश किया था | श्रीमती गाँधी ने अपनी सत्ता का दुरूपयोग किया लेकिन बताया ऐसे जैसे वे भारतीय जनता की हितेशी हो और उनकी तुलना हिटलर से भी की गई |

उन्होंने  आगे अपने पत्र में लिखा था कि जैसे - जैसे श्रीमती गाँधी सत्य से अधिकाधिक दूर हटती जा रही थी , वैसे वैसे उनका गढ़  ढ़ह रहा था और उनकी नैतिक दृष्टि दुर्बल होती जा रही थी | श्रीमती गाँधी ने जो स्वांग रचा था उसके बारे में पत्र मे कथित है कि जब झुठाई का पर्दाफाश होगा , स्वांग उतर जाएगा और अधिकार समाप्त होगा , तब श्रीमती गाँधी को किसी की सहायता की आवश्यकता प्रतीत होगी और सद्विवेकबुद्धि से समझौता करना पड़ेगा | उस समय परमेश्वर के सम्मुख उन्हें पुरे सत्य के साथ पेश होना पड़ेगा |

परमेश्वर निश्चित ही श्रीमती गाँधी को क्षमा करे परन्तु जनता उन्हे क्षमा नही कर पायेंगे और जनता उनका मामला इतिहास को सौंप देंगी |

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