बचपन से जो स्वप्न संजोया
विदर्भ के
मलकापुर निवासी माखनलालजी ने अपने भाई को यह पत्र लिखा था |
कारावास में
उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ नही थी | किसी को कोई गलतफ़हमी हो गयी हो और वे वहा हो
ऐसा तो हुआ नही था | वे अपनी ध्येयनिष्ठा के कारण ही वहा आये थे और यह तो वे उनका सद्भाग्य
समझते थे | बचपन में जो स्वप्न उन्होंने देखा था , उसी के परिणामस्वरूप यह बंधन आ
गया था | जब वे कारागार से बाहर निकलेंगे , तब उनके मन में अश्रद्धा , अवहेलना ,
कटुता , तिरस्कार आदि विकारो का लवलेश भी नही रहेगा , इसकी उन्हें निश्चिंतता थी |
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