Tuesday, 24 December 2024

स्वयंसेवको के आपस में लिखे पत्र : संगठन - मंत्री द्वारा अपने मित्रो को लिखे पत्र का दूसरा अंश

 मुल्क का असली सपना

भिंड निवासी हमीत वारसी भोपाल नगर जनसंघ के संगठन मंत्री थे | वे कारागार में बहुत बीमार हो गये थे | उन्होंने अपने मित्रो को जो पत्र लिखे , उन पत्रों से दूसरा अंश यहाँ दिया जा रहा है |

उनके पत्र के अनुसार जेल में जिंदगी के लाभ ही लाभ था | विभिन्न विचारधाराए और मत होने के बावजूद , ऐसा लगता कि वे लोग राष्ट्रीय परिवार में रहकर आनंद उठा रहे थे | संघ के संकल्प तथा भावनाओ ने उन सभी को एक सूत्र में बाँध दिया था | कुछ कर गुजरने और हर चीज को ग्रहण करने की क्षमता भी इनमे थी | 

अतः संघ जैसी जमीन के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी का सौदा भी महँगा नही था और उनकी नज़रो में मुल्क का असली सपना संघ ही था यह भी उनके पत्र में लिखा था |

Monday, 23 December 2024

स्वयंसेवको के आपस में लिखे पत्र : संगठन - मंत्री द्वारा अपने मित्रो को लिखे पत्र का एक अंश

 जिंदगी उन्ही के लिए

भिंड निवासी हमीत वारसी भोपाल नगर जनसंघ के संगठन - मंत्री थे | वे कारागार में बहुत बीमार हो गये थे | उन्होंने अपने मित्रो को जो पत्र लिखे , उन पत्रों से एक अंश यहाँ दिया जा रहा है |

उन्होंने ने अपने पत्र में लिखा कि उनके मित्र का कहना सही था | उन्हें इन बन्धनों को तोडना होगा क्योकि उनकी जिंदगी उनका मिशन थी | उनका परिवार और उनके रिश्तेदार उनके दल के लोग थे , जिन्होंने उन्हें प्यार दिया था और उनकी जिंदगी उन्ही के लिए थी | इसपर किसी और का अधिकार नही था |

अतः सच्चाई का रास्ता काँटों और तकलीफों से भरा होता है , इसलिए अपने परिवार की जानकारी होना आवश्यक है यह भी उनके पत्र में लिखा था |  

Sunday, 22 December 2024

स्वयंसेवको के आपस में लिखे पत्र : रामकृष्ण हेगड़े द्वारा अर्कली नारायण को लिखा पत्र

 अन्तिम विजय सत्य की

रामकृष्ण हेगड़े बल्लारी के कारागार में थे | वहाँ से उन्होंने दिनांक 28 / 11 / 1976 को अर्कली नारायण को यह पत्र लिखा था | यह पत्र नही , स्वयंसेवक के ह्रदय का प्रतिबिंब दिखानेवाला दर्पण था |

उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि यह तो आत्मनिरीक्षण तथा आत्मशोधन का सुवर्ण अवसर ही उन्हें प्राप्त हुआ था | सत्य के मार्ग पर अग्रसर होना और सत्य के लिए लड़ना कभी व्यर्थ नहीं जाता | प्रत्येक की परीक्षा लेने की ईश्वर की यह एक रीति थी परन्तु यह निश्चित था कि अंत में सत्य की विजय होगी और असत्य हारेगा |

Sunday, 15 December 2024

पारिवारिक पत्र : स्वयंसेवक द्वारा अपनी पत्नी को लिखा पत्र

 दुःखो से ही सुखो का मूल्य

फतेहगढ़ केंद्रीय करागार से 6 / 2 / 1976 को स्वयंसेवक द्वारा अपनी पत्नी को लिखे गये पत्र का कुछ स्फूर्तिप्रद अंश इस प्रकार का था |

इन्हें अपनी पत्नी का पत्र मिला जिसे पढ़कर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई | उनके जैसी पत्नी पाकर वे धन्य हो गये थे | सुख – दुःख तो लगे रहेंगे परन्तु उन्होंने मुसीबत में हिम्मत नही हारी थी और उन्हें भी हिम्मत बंधायी थी | यदि जीवन में दुःख न आये तो सुखो का भी पता नही चलता |

उन्होंने लिखा कि क्या क्षमा मांगकर वे अपनी बदनामी करवाते ? और यदि उनकी बदनामी होती तो उनकी पत्नी की भी बदनामी होती | जैसे कुछ लोगो ने लिखकर दिया था , उनके अखबार में नाम भी छपे थे और वे समाज में मुह दिखने के लायक भी नही रहे थे |

उनकी पत्नी की तरफ से कोई पत्र नही था | इससे उनके मन में चिंता हुई कि कही उनके ऊपर कुछ गलत असर न हो गया हो किन्तु उनकी पत्नी के पत्र ने स्वयंसेवक का मन प्रसन्न कर दिया था |  

Thursday, 12 December 2024

पारिवारिक पत्र : गरुड़प्पा द्वारा अपने पुत्र को लिखा पत्र

 मैं धन्य हो गया

गरुड़प्पा एक सामान्य मजदूर थे | किसी प्रकार बड़ी गरीबी में वे अपना परिवार चला रहे थे | उनका पुत्र पुलकेशी बंगलौर कारागार में भारत सुरक्षा कानून के अंतर्गत बंदी था | सामान्यतः ऐसी परिस्थिति में पिता अपने पुत्र पर बहुत नाराज होते थे | परन्तु गरुड़प्पा असामान्य थे | उन्होंने अपने पुत्र को लिखा :-

उनका ह्रदय आनंद से भर गया था | माँ और पुत्र , दोनों ने सत्याग्रह करते हुए जो देश – कार्य किया था , उसे देख वे धन्य हो गये थे | अपने देश की थोड़ी भी सेवा करने का सौभाग्य उन्हें नही मिला था | न तो उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त हुई और न उनके पास धन था | प्रारंभ से ही उनका परिवार विकट आर्थिक परिस्थिति का सामना कर रहे थे | परन्तु उनके पुत्र की इस कृति से उन्हें अपार शांति मिली थी | अब उन्हें अपने भावी जीवन की रूपरेखा बनानी चाहिए | उस समय भारत माता को बड़ी कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा था | ऐसे समय में त्याग और बलिदान ही उनका कर्तव्य था | और अपने पुत्र से परिवार के प्रति उनकी कोई अपेक्षा नही थी | 

Wednesday, 11 December 2024

पारिवारिक पत्र : व्यंकटेश शानभाग द्वारा अपनी छोटी बहिन सुलोचना को लिखा पत्र

वनवास समाप्त हुआ

व्यंकटेश शानभाग ने बेलगाँव कारागार से 06 / 03 / 1977 को अपनी छोटी बहिन सुलोचना को कैसा काव्यमय पत्र लिखा था , देखिये |

शंखध्वनि गूँज उठी | धर्मयुद्ध की घोषणा हुई | विभीषण राम के पक्ष में आ गया था | सेतु बाँधा गया था | अब थोड़े ही दिनों में राम रावण युद्ध होगा और शीघ्र ही उनका वनवास समाप्त होगा ऐसा उनका मानना था | 


Monday, 9 December 2024

पारिवारिक पत्र : डा.मुल्ये की पत्नी द्वारा डा.मुल्ये को लिखा पत्र

 गर्दन ना झुके

डा. मुल्ये इंदौर ( म.प्र ) संघ के कार्यकर्ता थे | वे मीसा के अंतर्गत बंदी थे | उनके कुछ हितचिंतको ने उन्हें मुक्त कराने का प्रयास किया | शर्त केवल यही थी कि डॉक्टर साहब बीस सूत्री कार्यक्रम का सौम्य समर्थन लिख दे |

यह सूचना मिलने पर डा.मुल्ये की पत्नी ने जेल में बंद अपने पति को लिखा था कि उन्हें आशा थी कि वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे गर्दन नीची हो | वे हर तरह का कष्ट सहेंगे पर यह नही चाहेंगे कि वे उनकी खातिर उनके ऊपर कोई कलंक लगवाये | 

Friday, 6 December 2024

पारिवारिक पत्र : पिता द्वारा पुत्र को लिखा पत्र

सत्याग्रही पुत्र को पिता का पत्र 

अमरावती के डाक्टर पाठक आपातस्थिति की कृपा से अपनी नौकरी खो बैठे थे | परिस्थिति कठिन थी | फिर भी उनके पुत्र ने सत्याग्रह किया | वह कारागार में था |

डाक्टर महोदय ने उसे लिखा कि उन्हें सत्याग्रह का संचालन करते हुए बड़े परिश्रम उठाने पड़े अतः तुम्हे पढाई के लिए समय न मिल सका , यह वे भली – भांति जानते थे | परिणाम की चिंता न करे | एकाध वर्ष गवाना भी पड़ा तो कोई चिंता का विषय नही था |

Thursday, 5 December 2024

पारिवारिक पत्र : माखनलालजी द्वारा अपने भाई को लिखा पत्र

 बचपन से जो स्वप्न संजोया

विदर्भ के मलकापुर निवासी माखनलालजी ने अपने भाई को यह पत्र लिखा था |

कारावास में उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ नही थी | किसी को कोई गलतफ़हमी हो गयी हो और वे वहा हो ऐसा तो हुआ नही था | वे अपनी ध्येयनिष्ठा के कारण ही वहा आये थे और यह तो वे उनका सद्भाग्य समझते थे | बचपन में जो स्वप्न उन्होंने देखा था , उसी के परिणामस्वरूप यह बंधन आ गया था | जब वे कारागार से बाहर निकलेंगे , तब उनके मन में अश्रद्धा , अवहेलना , कटुता , तिरस्कार आदि विकारो का लवलेश भी नही रहेगा , इसकी उन्हें निश्चिंतता थी |  

Wednesday, 4 December 2024

स्वयं सेवकों के पत्र : भाऊसाहेब भुस्कुटे द्वारा बालासाहेबजी को पत्र

 मुझे पैरोल नही चाहिए

यह पत्र भाऊसाहेब भुस्कुटे ने स्वाक्षरी न करने के कारणों को सूचित करने हेतु जिला कारागार , होशंगाबाद से 30 / 04 / 1976 के दिन बालासाहेब को लिखा |

उन्होंने ने अपने पत्र में नमस्कार करके संबोधित करते हुए कहा कि चि. नाना ने उन्हें पत्र द्वारा सूचित किया कि उसने उनके लिए पैरोल का प्रार्थनापत्र भेजा था और वे भी उसी प्रकार से भेजे परन्तु उन्होंने अर्जी ना देने का निश्चय किया था | वह उनसे मिलने गये थे , तथा तैयार अर्जी भी लाये थे और उन्हें स्वाक्षरी ( हस्ताक्षर ) करने के लिए भी कहा था | परन्तु उन्होंने उसे स्वाक्षरी न करने के कारण बताये |

उन्होंने कारण बताते हुए कहा कि मित्रवर मधुकर ( सिवनी , मालवा ) के छोटे भाई सरकारी अस्पताल में , एकाएक हृदयगति अवरुद्ध होने से मृत्यु को प्राप्त हुए थे | पिपरिया के भी 60 वर्षीय मित्रवर शिवनाथ दीक्षित की 90 वर्षीय माताजी अस्वस्थ थी | हरिजी की कन्या भी चेचक और निमोनिया से बीमार थी | इन सभी को पैरोल नही मिला था | हर्दा के प्र.स.प. के 70 वर्षीय बाबूलालजी के 95 वर्षीय पिता अस्वस्थ थे फिर भी उन्हें नही छोड़ा और उनके पिता के निधन के 15-20 दिनों बाद बाबूलालजी को पैरोल मिला था |

लाखो निरपराध लोगो को कारागार में ठूँसना ही हीन वृत्ति की परिकाष्ठा थी | क्षितिज की ओर चलते रहने पर वह आगे- आगे बढता चला जाता वैसे ही यह वृत्ति हीन होती जा रही थी | ऐसी हीन वृत्तिधारी लोगो के सामने हाथ पसारना और “हमें पैरोल पर छोडिये” ऐसी प्रार्थना करना ह्रदय को जँचता न था |

जैसे क्षितिज असीम है , वैसे ही कांग्रेसियों की हीन वृत्ति असीम है , यह देखकर बड़ा क्रोध आता है | अंततः ये सब हमारे भाई है , इस विचार का मन पर गहरा प्रभाव होने के कारण ही मन को शांत करना संभव हो पाता ऐसा भी भाऊसाहेबजी ने अपने पत्र में लिखा |

कविकुल कालिदास ने कहा है :-

याचा मोघा वरमधिगुणे नाध में लब्धकामा |

भावार्थ , किसी गुणवान को की हुई याचना निष्फल हो गयी तो भी वह अच्छा है , परन्तु किसी दुर्गुणी से याचना की और वह फलवती हुई तो भी वह खराब है | 

Tuesday, 3 December 2024

स्वयं सेवकों के पत्र : देवरसजी द्वारा कुशाभाऊ ठाकरे को पत्र

 दृढ़ता रखे , सामर्थ्य बढाये

यह पत्र देवरसजी ने येरवडा ( यरवदा ) , पूना से 23 / 04 / 1976 के दिन कुशाभाऊ ठाकरे को पत्र लिखा |

उन्होंने लिखा कि वहा मध्यप्रदेश के अनेक प्रमुख लोग थे | ठीक से विचार – मानधन होकर भविष्य के बारे में सारा विचार होगा , ऐसी अपेक्षा थी | यद्यपि उस समय संकटावस्था थी , फिर भी इसमें से निकलने के उपरांत , नये जोश से , दुगने उत्साह से , ताबड़तोड़ काम में जुटना चाहिए |

उन्होंने अपने पत्र में दो श्लोक भी उल्लेखित किये :-

केला जरी पोत बल्केची खाले |

ज्वाला तरी ते वरती उफाले |

अर्थात् मशाल को जबरदस्ती नीचे करने पर भी उसकी ज्वाला ऊपर की ओर ही भभक उठती है | वैसा ही कार्यकर्ता का स्वभाव होना चाहिए |


 आकाशिच्या कु – हाडी आमुछया पडोत |

आघात सोसण्याचे सामर्थ्य मात्र द्यावे |

अर्थात् हमारे सिर पर आकाश से कुल्हाड़ियो की वर्षा क्यों न हो , उसकी हमें चिंता नहीं है | बस वह आघात सहन करने का सामर्थ्य हमें प्रदान करो | ऐसी हमारी तैयारी रहनी चाहिए |  

मराठी साहित्यकारों को राम शेवालकर जी ने पत्र लिखा

 उपाधियाँ लौटाये

एक विशेष कारण से यह पत्र राम शेवालकर ने 24 / 06 / 1976 के दिन मराठी साहित्यकारों को लिखा |

घटनात्मक मूलभूत स्वातंत्र्य के अपहरण को हुए 23 जून को एक वर्ष पूर्ण हो गया था , तथा ये स्वातंत्र्य फिर से निरपराध सामान्य जनता को प्राप्त होगा , ऐसा लग नही रहा था | ‘मीसा’ में जो संशोधन किया गया उससे आशा निराशा में बदल गयी थी | एक वर्ष तक जनता को घुटन का अनुभव करना पड़ा था |

राम शेवालकर जी ने दो बातो का प्रस्ताव रखा पहली , शासन के साथ सविनय कर शासकीय या अर्धशासकीय समिति के पद एवं सदस्यता से त्याग पत्र देना और दूसरी केंद्र अथवा राज्य शासन की ओर से कोई सम्मान – निदर्शक उपाधि का खेदपूर्वक परित्याग करना और साहित्यसेवी जनो से उसका अहिंसक निषेध करने की भी प्रार्थना की थी |

उन्हें आशा थी कि अधिकांश साहित्यकार इन दो बातो पर अमल करेगे और यदि वाड्मयोपासक एक साथ एक ही पत्रक पर हस्ताक्षर करेगे और भेजेगे तो वह अधिक परिणामकारक होगा | शायद वह सत्ता पर परिणाम न करे परुन्तु वह सालभर से मृतवत् सोये हुए मन में अवश्य प्रेरणा भरेगा और चैतान्यदायी प्रभाव करेगा |

 

 

Monday, 2 December 2024

बालासाहेब देवरस का दूसरा पत्र

 जो विश्व से कहती हो वह अपने देश में करो

यह पत्र बालासाहब देवरस ने श्रीमती गाँधी को 16 / 07 / 1976 के दिन लिखा था |

यह पत्र लिखने के कुछ दिन पूर्व श्रीमती गाँधी ने रूस , पूर्व जर्मनी एवं अफगानिस्तान की यात्रा की थी | वहा श्रीमती गाँधी ने अपने भाषण में कहा कि विश्व में जो तनाव की स्थिति विद्यमान थी , उसे कम करने के लिए प्रयत्नशील रहने का आश्वासन दिया था | उन्होंने आवाहन भी  दिया कि विभिन्न राजनितिक विचार तथा सामाजिक व्यवस्था रहते हुए भी सब में एकता रहनी चाहिए |

देवरस जी ने आगे लिखा कि जब वे विभिन्न राष्ट्रों के बीच का तनाव कम करने की सोचती थी , तब के राष्ट्र में जो तनाव विद्यमान था उसे कम करने का विचार उनके मन में आवश्य ही आया होगा | इस देश में प्रजातंत्र था और वह सदा बना रहेगा ऐसा श्रीमती गाँधी भी साग्रह कहती थी और प्रजातंत्र का अर्थ एकरूपता नहीं थी , प्रत्युत विविधता में एकता थी , यह भी श्रीमती गाँधी बार – बार कहती थी |

अतः मतभिन्नता के होते हुए , विभिन्न विचारवाली विभिन्न संस्थाओ तथा संस्थाओ तथा संगठनो के मध्य तनाव न रहे , यह भी श्रीमती गाँधी अवश्य मानेंगी | उन्होंने प्रार्थना करते हुए कहा कि संघ के संबंध में फैली हुए निराधार दुर्भावनाओ को दूर हटाकर श्रीमती गाँधी संग को ऊपर उठा , संघ के विषय में पुनर्विचार करें और संघ पर लगी पाबंदी उठाए |