मुझे पैरोल नही चाहिए
यह पत्र भाऊसाहेब भुस्कुटे ने स्वाक्षरी न करने
के कारणों को सूचित करने हेतु जिला कारागार , होशंगाबाद से 30 / 04 / 1976 के दिन
बालासाहेब को लिखा |
उन्होंने ने अपने पत्र में नमस्कार करके संबोधित
करते हुए कहा कि चि. नाना ने उन्हें पत्र द्वारा सूचित किया कि उसने उनके लिए
पैरोल का प्रार्थनापत्र भेजा था और वे भी उसी प्रकार से भेजे परन्तु उन्होंने
अर्जी ना देने का निश्चय किया था | वह उनसे मिलने गये थे , तथा तैयार अर्जी भी
लाये थे और उन्हें स्वाक्षरी ( हस्ताक्षर ) करने के लिए भी कहा था | परन्तु
उन्होंने उसे स्वाक्षरी न करने के कारण बताये |
उन्होंने कारण बताते हुए कहा कि मित्रवर मधुकर (
सिवनी , मालवा ) के छोटे भाई सरकारी अस्पताल में , एकाएक हृदयगति अवरुद्ध होने से
मृत्यु को प्राप्त हुए थे | पिपरिया के भी 60 वर्षीय मित्रवर शिवनाथ दीक्षित की 90
वर्षीय माताजी अस्वस्थ थी | हरिजी की कन्या भी चेचक और निमोनिया से बीमार थी | इन
सभी को पैरोल नही मिला था | हर्दा के प्र.स.प. के 70 वर्षीय बाबूलालजी के 95
वर्षीय पिता अस्वस्थ थे फिर भी उन्हें नही छोड़ा और उनके पिता के निधन के 15-20
दिनों बाद बाबूलालजी को पैरोल मिला था |
लाखो निरपराध लोगो को कारागार में ठूँसना ही हीन
वृत्ति की परिकाष्ठा थी | क्षितिज की ओर चलते रहने पर वह आगे- आगे बढता चला जाता
वैसे ही यह वृत्ति हीन होती जा रही थी | ऐसी हीन वृत्तिधारी लोगो के सामने हाथ
पसारना और “हमें पैरोल पर छोडिये” ऐसी प्रार्थना करना ह्रदय को जँचता न था |
जैसे क्षितिज असीम है , वैसे ही कांग्रेसियों की
हीन वृत्ति असीम है , यह देखकर बड़ा क्रोध आता है | अंततः ये सब हमारे भाई है , इस
विचार का मन पर गहरा प्रभाव होने के कारण ही मन को शांत करना संभव हो पाता ऐसा भी
भाऊसाहेबजी ने अपने पत्र में लिखा |
कविकुल कालिदास ने कहा है :-
याचा मोघा वरमधिगुणे नाध में लब्धकामा |
भावार्थ , किसी गुणवान को की हुई याचना निष्फल हो
गयी तो भी वह अच्छा है , परन्तु किसी दुर्गुणी से याचना की और वह फलवती हुई तो भी
वह खराब है |