कारण – परंपरा
सामान्यतः यह
माना जाता है कि दिनांक 12 जून 1975 को प्रयागराज (इलाहाबाद) उच्च न्यायालय द्वारा
दिए गये निर्णय के कारण ही श्रीमती गाँधी ने यह अतिवादी पग उठाया था | किन्तु
वास्तव में इसके पीछे एक लंबी कहानी थी | नेहरू खानदान का स्वभाव, कांग्रेस का
ढाँचा, बड़े-बड़े नेताओं का रवैय्या,इंदिराजी का पूर्वचरित्र, उनकी कार्यशैली, बंगला देश की विजय
से उत्पन्न अभियान, थोथे नारों की कलई खुलने के कारण जनता का उभडा हुआ रोष और
असंतोष, गुजरात का आंदोलन और कांग्रेस का पराभव, जयप्रकाशजी का राजनीतिक क्षेत्र
में पुनरागमन आदि अनेक कारणों के फलस्वरूप इंदिराजी इस सीमा तक पहुँची |
जिस वातावरण और
परिस्थिति में श्रीमती गाँधी पली थी उन्ही के फलस्वरूप वे अत्यंत हठी,
आत्मकेंद्रित, स्वार्थी, अपना महत्त्व बनाये रखने के लिए सजग, असहिष्णु, असुरक्षा
की भावना से ग्रस्त, अहंकारी, दुःसाहसी तथा निर्मम बनी थी |
इंदिराजी जब पंद्रह
वर्ष की थी, तब स्वयं नेहरूजी उनके बारे में अपनी बहिन श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित
को देहरादून जिला कारागार से लिखा था –“वह हम दोनों ( माता-पिता की) तथा अन्यो की
पूर्णतः उपेक्षा करती है | ऐसा क्यों है ? मुझे लगता है कि इंदु असामान्यतः कल्पना-जगत
में विहार करती है | वह स्वयंकेन्द्रित अथवा आत्मलीन है | सचमुच, मुझे ऐसा लगता है
कि अनजाने में ही वह बहुत स्वार्थी बन गयी है….”
जिद्दीपन तो
उनमें कूट-कूट कर भरा था | उस समय इंदिरा ऑक्सफ़ोर्ड में थी | नेहरुजी उन्हें वापस
ले आये, उन्होंने वहा से निकलते हुए कहा कि “मैं यहीं रहना चाहती हूँ, आपके साथ
नही आना चाहती | यदि आप अनुमति नही देते, तो भले ही मैं चलूंगी पर आपसे बोलूंगी
नहीं |” नेहरूजी ने सोचा – आखिर बच्ची है,यो ही कह दिया होगा | परंतु नेहरूजी
हैरान रह गये कि उनकी प्रिय इंदु न तो पंद्रह दिनों की जहाजी यात्रा में और न बंबई
से प्रयाग तक के रेल प्रवास में उनसे बोली | अंततः नेहरूजी ने हार मान ली और
उन्होंने तुरंत ही इंग्लैण्ड भेज दिया था |
इंदु ने स्वयं अपनी
इच्छा से फ़िरोज़ गाँधी से विवाह करने का निश्चय कर लिया था | यह विवाह पिता को तथा
उनकी बुआओ को कतई पसंद नही था | पिता और महात्मा गाँधी दोनों ने इंदु को समझाया,
परन्तु वह नही मानी | मार्च 1982 में फिरोज-इंदिरा विवाह प्रयाग में बहुत सादे ढंग
से संपन्न हुआ था | इंदिराजी का वैवाहिक जीवन भी सुखी नही था |
इंदिराजी ने
स्वयं भी एक स्थान पर कहा था –“राजनीतिक संघर्षो के कारण मेरा बचपन असामान्य
परिस्थिति में कटा | मैं सदैव अकेलापन और असुरक्षितता अनुभव करती थी |”
अतः पंडित
नेहरू ने एक प्रसंग पर कहा था, ”यह इतनी जिद्दी है कि इसे कोई भी पद नही दिए जाने
चाहिए |”
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