मधु दंडवते ने सौ . प्रमिला को लिखा
मधु
दंडवते ने अपने पत्र में लिखा कि बंगलौर में अपराधी कैदियों की संख्या बड़ी थी | आजनम
कारावासी भी बहुत थे | वे लोग गुलाब के पौधों को उनके अश्रुजल से सींचते थे | सुगंधमय
गुलाब के फूलों के खिलते हास्य में वे उनके अश्रुओं का प्रतिबिंब देखते थे | आजन्म
कारावास भोगनेवालो की करूण तथा नाट्यपूर्ण कथाए सुनकर प्राण तिलमिलाते थे |
1918
में युद्ध के विरोध में प्रचार करने के फलस्वरूप बर्ट्रेण्ड रसेल को साढ़ेचार मास
की सजा हुई थी | उस समय इन अपराधिक ढंग से प्रकट किये थे , उनकी वे अनुभूति ले रहे
थे |
उन्होंने
अपने पत्र में यह भी लिखा कि तंतुवाद्य का एक तार छेड़ने पर अन्य तार भी झंकृत हो
उठते है ...... विज्ञान का यह नियम मानव – मन पर भी कदाचित लागू है ,
इसलिए उनके मन में स्पंदन अन्य मनो में भी कम्पन उत्पन्न करते दिखाई पड़ती थी
......
अतः
वहां के एकांत में चिंतन , मनन , लेखन , वाचन ही समय व्यतीत करने का मार्ग था |
इसलिए तो “मार्क्स और गाँघी” पुस्तक वे लिख सके |
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