Tuesday, 11 February 2025

पारिवारिक पत्र : मधु दंडवते द्वारा सौ . प्रमिला को लिखा पत्र

 मधु दंडवते ने सौ . प्रमिला को लिखा

मधु दंडवते ने अपने पत्र में लिखा कि बंगलौर में अपराधी कैदियों की संख्या बड़ी थी | आजनम कारावासी भी बहुत थे | वे लोग गुलाब के पौधों को उनके अश्रुजल से सींचते थे | सुगंधमय गुलाब के फूलों के खिलते हास्य में वे उनके अश्रुओं का प्रतिबिंब देखते थे | आजन्म कारावास भोगनेवालो की करूण तथा नाट्यपूर्ण कथाए सुनकर प्राण तिलमिलाते थे |

1918 में युद्ध के विरोध में प्रचार करने के फलस्वरूप बर्ट्रेण्ड रसेल को साढ़ेचार मास की सजा हुई थी | उस समय इन अपराधिक ढंग से प्रकट किये थे , उनकी वे अनुभूति ले रहे थे |

उन्होंने अपने पत्र में यह भी लिखा कि तंतुवाद्य का एक तार छेड़ने पर अन्य तार भी झंकृत हो उठते है ...... विज्ञान का यह नियम मानव – मन पर भी कदाचित लागू  है  , इसलिए उनके मन में स्पंदन अन्य मनो में भी कम्पन उत्पन्न करते दिखाई पड़ती थी ......

अतः वहां के एकांत में चिंतन , मनन , लेखन , वाचन ही समय व्यतीत करने का मार्ग था | इसलिए तो “मार्क्स और गाँघी” पुस्तक वे लिख सके |

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