नयी किरण चमकने लगी है
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगे जब एक वर्ष हुआ , ठीक उसी दिन 8 / 7 / 1976 को शेषाद्रिजी
ने बंगलौर के कारागार में नागभूषणम् को पत्र लिखा , उसमे उन्होंने बीते हुए वर्ष
का सिहावलोकन किया है | इस पत्र की भाषा और आशय , दोनों ही स्फूर्तिदायक है |
उस वर्ष में
घटित बातो का जब वे स्मरण करते थे , तब उनका मन अनेक स्फूर्तिप्रद घटनाओं से भर
जाता था | जैसे – जैसे दिन बीतते जाते , वैसे – वैसे उनका दैनदिन जीवन , उनकी
कार्यशैली , उनकी चर्चा , उनकी हलचलों आदि पर एक नयी मुद्रा अंकित हो रही थी | तब
वे जीवन की यही रीति बननेवाली थी | किसी समय वातावरण में घुटन थी , कड़ाई थी , लोग
दूर रहते थे , उसमे ढिलाई आ गयी थी | हलचल आरंभ हो गयी थी | पुराने कार्यकर्ताओं
में नयी किरण चमकने लगी थी | उनके अतिरिक्त , संघर्ष के लिए समुद्यत नये
कार्यकर्ताओ का समूह भी सामने आ रहा था |
आश्चर्य की बात
यह थी कि मंडली में कोई भी निराश नहीं दिखाई देता था | किसी के भी मन में पराजय की
छाया तक नही थी , परन्तु बाहर के लोगो में , अधिकतर बुद्धिजीवियों में , वह काली
छाया गहराई से मंडरा रही थी | घेरे के बाहर निकलने का मार्ग किसी को भी मालूम नही
था |
उनके बारे में
सब के मनो में बहुत आदर था , परन्तु वे कुछ दुखी होकर कहते थे , “उनके इस संघर्ष
में उग्रता नही है|” वे ऐसा क्यों कहते थे , उसका कारण शेषाद्रिजी और उनके साथी
भलीभांति जानते थे | दीर्घकाल तक चलनेवाले संघर्ष का तंत्र ( प्रविधि ) समझने की
मानसिक क्षमता उनमे नही थी ...... तर्क या चर्चा से उनका मत बदला नही जा सकता थे ,
वे यदि सदासर्वदा दक्षता , तत्परता तथा एकता का अवलंब करेंगे तो उनका मत –
परिवर्तन स्वयं ही होगा ऐसा शेषाद्रिजी का मानना था | और संघर्ष की हृदयस्पर्शी
सहजात स्मर्तियाँ भी कुछ कम प्रभावी नहीं थी , बाहर लोग जो बोल रहे थे और उनके मन
में जो कल्पना घर कर रही थी , वह एक उत्साहवर्धक चिहन था ......
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