Wednesday, 19 February 2025

स्वयंसेवको के आपस में लिखे पत्र : अटलविहारी वाजपेयी द्वारा स्वयंसेवक बंधु को लिखा पत्र

 न दैन्यं न पलायनम्

अटलविहारी वाजपेयी ने स्वयंसेवक बंधु को 25/09 /1976 को आयुविज्ञान संस्थान अंसारी नगर, नयी दिल्ली से लिखा था |

पत्र की शुरुआत करते हुए अटलजी ने लिखा कि पत्र में क्षीरसागरजी के आकस्मिक देहावसान का समाचार सुनकर गहरा धक्का लगा था | गत 16 महीनो के संघर्षकाल में जो कार्यकर्ता हमेशा के लिए विदा हुए थे , उनकी समृति सबके ह्रदयो में सदैव ताज़ा रहेगी | अपने आदर्शो और विश्वासों के लिए काम करते हुए स्वाभाविक रूप से मृत्यु का वरण करने वाले प्रिय होते किन्तु जो युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त होते वे लोग तो प्रेरणादायक बन जाते है |

आगामी 29 अक्टूबर को भारतीय जनसंघ उनके जीवन के 25 वर्ष पूर्ण कर लेंगे | आश्रम व्यवस्था के अनुसार 25 वर्ष के बाद व्यक्ति का परिवार-जीवन प्रारंभ होता | संगठन के नाते अब उन्हें भी राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय में निष्ठा रखनेवाले सभी भारतीयों को, बिना किसी भेदभाव के, एक परिवार मानकर चलना था और तदनुसार उन्हें अपना दायित्व का निर्वाह करना था |

जनसंघ के संस्थापक प्रधान, हुतात्मा डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने संसद में राष्ट्रवादी लोकतांत्रिक गुट का गठन कर जिस ऐतिहासिक प्रक्रिया को प्रारंभ किया था, अब उसे अंतिम रूप देने का अवसर आ गया था |

25 वर्ष के कालखंड में उन्होंने अनेक उतार-चढ़ाव देखे थे | प्रारंभिक विफलता ने उन्हें निराश नही किया, प्रयत्नसाध्य सफलता हमें विवेकभ्रष्ट नही कर सकी थी | राष्ट्रीय संकट के प्रत्येक अवसर पर वे प्रथम पंक्ति में रहते थे | उस दिन, जबकि एक भयावह अंधेरा उनकी अस्मिता के आलोक को निगल जाने को तुला था,उन्हें ध्येयसिद्धि के लिए जीने, जूझने और आवश्यकता पड़ने पर मर मिटने के उनके संकल्प को दोहराना होगा |

शहीद की मौत मरने का सौभाग्य सब को कहाँ मिलता ? अपने पत्र के माध्यम से सभी काराबद्ध कार्यकर्ताओं-बहनों और भाइयो-को उन्होंने शुभकामाए और आदर दिया और लिखा कि उनका कष्ट-सहन व्यर्थ नही जाएगा |

“न दैन्यं, न पलायनम्” – अर्जुन की यह दोहरी प्रतिज्ञा ही सबका उद्देश्य होना चाहिए | काया को कैद कर, या दिल को दुखाकर जो यह समझते है कि मुक्ति की माँग को मिटा देंगे, उन्हें हमेशा पछताना पड़ता है | पशुबल परास्त होता है और अंततः आत्मबल की विजय होती है |

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