एक लाख में हम भी एक
यह
पत्र डी . जे . शिवराम जी ने अपने पिता को लिखा था | वे संघ के युवक कार्यकर्ता थे
| वे गुलबर्गा केन्द्रीय कारागार में बंदी थे | उनके पिता ने , पारिवारिक संकट , नगर
में जल का अभाव , घर के सदस्यों की बीमारी आदि बातो का वर्णन करते हुए पुत्र को
बहुत ही हृदयद्रावक पत्र लिखा |
उस
पत्र का तत्काल उत्तर देते हुए शिवराम जी ने अपने पिता को लिखा कि उनके पिता का
कहना सही था | उनके पारिवारिक जीवन पर अनेक संकट छाये हुए थे | अनेक अड़चनों का
सामना करना पड़ रहा था परन्तु ये बाते केवल उनके घर पर लागू हो , ऐसी बात नहीं थी |
यह सब जिन्हें भोगना पड़ रहा था , ऐसे एक लक्ष परिवारों में उनका परिवार था |
जब करोड़ो लोग मृतको के समान जीवन जी रहे थे तब सुख की आशा करना चन्द्र को पाने की इच्छा करने के समान ही था | कोई अदृश्य शक्ति उनके हाथ पकड़कर उनका मार्गदर्शक कर रही थी | वे न्याय की रक्षा के लिए कार्य कर रहे थे , इस बात का उन्हें समाधान था |
अतः इस पथ से दूर हट जाना उनके लिए बहुत अयोग्य था , ऐसा उनका दृढ़ विश्वास था |
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