तानाशाही से समझौता नही
लालकृष्ण
आडवाणी ने बंगलौर कारागार से 15/ 8/ 1976 को कार्यकर्ताओं को लिखा था |
लालकृष्ण
आडवाणी ने अपने पत्र ने लिखा कि स्थान-स्थान पर उन्हें शारीरिक यातनाए सहन करनी
पड़ी थी | अनेक बंधुओ ने सीचको के पीछे प्राण गँवाये थे | सैकड़ो परिवार आर्थिक
दृष्टि से बरबाद हो गए थे | लोकतंत्र की पुनःस्थापना के लिए चल रहे वर्तमान यज्ञ
में उनके कार्यकर्ताओं ने जो बलिदान किया था, उस पर वे गर्व कर सकते थे | जनसंघ के
संस्थापक डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी लोकतंत्र के अनन्य उपासक थे | उनके अनुयायी
तानाशाही के साथ समझौता नही कर सकते थे | तब ऐसे सहसो कार्यकर्ता थे जो सर्वस्व की
बाजी लगाकर मैदान में उतरे हुए थे |
उन्होंने
कार्यकर्ताओ को संबोधित करते हुए यह भी लिखा कि “हो सकता है आप भी उनमे से एक है |
यदि अब तक नहीं है, तो इसी क्षण शामिल हो जाइए” |
इस पत्र द्वारा
वे इस बात पर बल देना चाहते थे कि उनकी मर्यादा में रहते हुए भी वे कई प्रकार से
लोकतंत्र की सेवा कर सकते है | सबसे बड़ी सेवा है, चारों ओर भय के वातावरण को
विदीर्ण करना | अपने व्यवसाय-क्षेत्र में, अपने मित्रवर्ग में, सदैव सत्य, साहसी
तथा स्वाभिमान की भाषा बोले | ऐसे वातावरण का निर्माण करे जिससे चापलूसी और
चाटुकारिता के लिए लोगो के मन में सहज ग्लानि पैदा हो |
अतः गत वर्ष
कार्यकर्ताओं ने जितना कष्ट सहा था, वह वास्तव में लोकतंत्रीय मान्यता के लिए दी
गयी कीमत थी | इसके अलावा भी उनकी एक अपेक्षा थी कि वे संघर्षरत कार्यकर्ताओ का तन-मन-धन
से सहयोग करे |
No comments:
Post a Comment