Monday, 24 February 2025

कराल रात्रि की ओर - लोकतंत्र की हत्या

 कराल रात्रि की ओर

आपातकाल के कुछ महीने पहले जयप्रकाशजी ने सेकड़ो भाषण दिए तथा कुछ दिन पहले से वे सतत् भ्रमण कर रहे थे तथा अनेक नगरो और ग्रामो में जाकर वे जनजागरण कर देश की परिस्थिति से सब को अवगत करा रहे थे | विभिन्न दलों के नेताओं से भी विशेष रूप से मिलते थे और उनसे साग्रह निवेदन करते रहे कि “देश हिट के लिए सभी विरोधी पक्षों को एक जुट हो जाना चाहिए अन्यथा देश में तानशाही स्थापित होगी, घरानाशाही चलेगी, जनता दुखी हो जायेगी |”

दि.25 जून 1975 की शाम को जयप्रकाशजी बहुत प्रसन्न दिखाई दे रहे थे | सायंकाल रामलीला मैदान, सभा में उन्हें जो उत्साह दिखाई दिया, जिससे उनका मन गदगद हो उठा, उस विशाल जनसमूह के सम्मुख वे बोल रहे थे, उनका भाषण आपही प्रभावी हो गया था | सभा आयोजक भी संतुष्ट थे | उस विशाल जनसभा से हज़ारो लोग लौट रहे थे, तब प्रत्येक धूलिकण से मानो यही माँग उठ रही थी कि “प्रधानमंत्री त्यागपत्र दे और वास्तविक गणतंत्र की परंपरा का पालन करे |” आपही लोग नारे लगा रहे थे –“सिंहासन खाली करो कि जनता आती है|”  

जनता को नया प्रकाश दिखाई दे रहा था, देश को तानशाही से बचाने के लिए मार्गो का निर्माण हो रहा था, तभी 1,सफदरगंज भवन इंदिराजी के बंगले पर कुटिल योजनाओं को आकार देकर, लोकतंत्र की हत्या का जघन्य षड्यंत्र रचा जा रहा था | उस रात्रि जब सारा देश सो रहा था, तब श्रीमती गाँधी को सत्ता में बने रहने के लिए चंडाल-चौकड़ी के सदस्य सिद्धार्थशंकर राय,संजय गाँधी, बंसीलाल, धवन आदि भारत के 28 वर्षीय प्रजातंत्र को समाप्त करने के षड्यंत्र को अंतिम रूप दे रहे थे | षड्यंत्र की पूर्वयोजना बना लेने के बाद श्रीमती गाँधी और सिद्धार्थशंकर राय राष्ट्रपति भवन चले गये |

राष्ट्रपति श्री फखरुद्दीन अली भी इस बात से अवगत थे कि उन्हें उस रात कुछ विशेष बेढंगा कार्य करना था | वे तो प्रधानमंत्री के एहसान के भार से पहले ही दबे हुए थे | भारत का सर्वोच्च पद उन्होंने अपनी योग्यता से नही, श्रीमती गाँधी की कृपा से मिला था | राष्ट्रपति भवन में सिद्धार्थशंकर ने जब राष्ट्रपति के समक्ष आपातकाल विषयक विषद विवेचन किया तब उन्होंने राष्ट्रपति पद के उत्तरदायित्व को भुलाकर अपने व्यक्तिगत लाभ को संभालना उचित समझा और बिना कोई ना-नुच करते हुए उन्होंने चुपचाप धवन के लाये हुए आपातकाल के प्रारूप पर हस्ताक्षर कर दिए थे |

कालचक्र उल्टा घुमने लगा,उस समय मध्य रात्रि के लिए केवल पंद्रह मिनट शेष थे | देशभर में प्रमुख नेताओं को बंदी बनाने के आदेश मुख्यमंत्रियों तथा पुलिस अधिकारियों को दिए जा रहे थे और साथ ही आतंरिक आपातकाल की घोषणा का प्रारूप तैयार किया जा रहा था |

अतः उसी रात सम्पूर्ण देश में गणतंत्र की वासंतिक बयार बंद हो गयी और एकाधिकारी सत्ता की ठिठुराने वाली, जलाने वाली, विषम हवाए बहने लगी थी |     

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