आपका अयोग्य पुत्र नही कहलायेगा
यादवराव
जोशी बंगलौर कारागार में बंद थे | नागपुर में उनके वृद्ध पिताजी जब अत्यंत अस्वस्थ
हो गये , तब यादवरावजी को सूचित किया गया था | यादवरावजी ने उत्तर में निम्नलिखित तार
भेजा |
भगिनी
तारा का भेजा हुआ तार प्राप्त हुआ था | वे अत्यवस्थ हो गये थे , यह जानकार बहुत
अधिक दुःख हुआ था | वे जीवनभर व्यक्तिगत रूप से उनकी कोई भी सेवा नहीं कर सके थे |
कम से कम , अंतिम समय में उनके चरणों में उपस्थित रहने की यादवराव जोशी की इच्छा
थी | लेकिन दिखता था कि भाग्य की कुछ दूसरी ही इच्छा थी | वे यदि मुक्त होते तो हवाई जहाज से नागपुर पहुँचते और उन्हें
साष्टांग प्रणाम करते | परन्तु वे जानते थे कि यादवराव जोशी इस समय बंदी थे और
गुलाम भी थे | उनके पवित्र चरणों को ऐसे अपवित्र हाथो से वे स्पर्श नही करना चाहते
थे |
यादवराव
जोशी ने अपने पिता को संबोधित करते हुए
अपने पत्र में लिखा कि उस समय यादवराव जोशी मातृभूमि की जो भी सेवा कर रहे थे , उसका
श्रेय उन्ही को जाता था | उनकी दी हुई शिक्षा तथा प्रेमभरे आशीर्वादों के कारण ही
वे यह कर सके थे | कृपया वे यादवराव जोशी पर चिरंतन आशीर्वादों की वर्षा करे और
उसी के फलस्वरूप उनकी सम्मति से चुने हुए इस दिव्य पथ पर वे आगे चलते रहेंगे , ऐसी
उन्होंने अपने पिता से प्रार्थना भी की थी |
यादवराव
जोशी ने अपने पिता और माता को साष्टांग प्रणाम किया और आश्वासन भी दिया कि वे कभी
भी तेजस्वी पिता का अयोग्य पुत्र नही कहलायेंगे तथा चारों बहनों को और सब निकट के
प्रिय रिश्तेदारों को प्रेमभावना भी ज्ञात की |
अतः
ईश्वर की कृपा से यदि यादवराव जोशी इस दुर्धर बीमारी से बच जाते तब निश्चित जानिए
की वहा से छुटते ही , एक मुक्त नागरिक के रूप में वे नागपुर दौड़ते हुए जायेंगे और
उनके चरणों में लिपट जायेंगे | उनका शत शत प्रणाम , पुनरिप स्वीकार करे ! यह भी
उन्होंने अपने पत्र में लिखा था |
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