आपके नाम पर अप्रचार
वाणी ( विदर्भ
) महाविद्यालय के प्राचार्य , विदर्भ साहित्य सम्मलेन के अध्यक्ष राम शेवालकर ने
विनोबाजी को पत्र लिखा :-
इसके पूर्व भेजे
विनोबाजी के पत्र की पहुँच उन्हें प्राप्त हुई | वे कृतज्ञ थे | उस पत्र के आशयानुसार
25 दिसम्बर को विनोबाजी का मौन भंग होने वाला था | अन्य अनेको के सदृश राम शेवालकर
भी उसी क्षण की राह देख रहे थे | उनके ऋषितुल्य मार्गदर्शन की देश को बहुत अधिक आवश्यकता
थी |
जब वे
महाराष्ट्र राज्य परिवहन मंडल की मोटर बस से यात्रा कर रहे थे | उसमे उन्हें
विनोबाजी के नाम पर लिखे कुछ वचन दिखाई दिये , वे वचन इस प्रकार थे :-
1. 1. प्रधान
मंत्री के क्रांतिकारी कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु , आइये , हम अथक प्रयास करे |
2. 2. काम अधिक
बोलना कम | समय की मांग है – अनुशासन और कार्यदक्षता | जो अफवाहे फैलाते है , उन्हें
देश के शत्रु ही मानिए |
3. 3. आपातकाल
का अर्थ है – अनुशासन पर्व | जनतंत्र का रक्षण ही आपातकाल का हेतु है | सरकारी नौकरी जनता का महान सेवन है |
- विनोबा
भावे
जो भी प्रकाशित
हुआ था वह सब “विनोबा साहित्य” में राम शेवालकर ने पढा था और वे “विनोबा साहित्य”
को श्रद्धा के साथ पढते थे | इसलिए उनके सम्मुख यह प्रश्न उपस्थित हुआ था | क्या
ऊपर के सब वचन विनोबाजी के श्रीमुख से निकले थे ? उन्हें लगता था नही, ये वचन विनोबाजी
के नही थे तो उनके नाम पर उन्हें प्रकाशित तथा प्रसृत करना, उनके विभूतिमत्व का
दुरूपयोग करना नही था क्या ?
अतः उन्हें आशा
थी कि विनोबाजी के मौन – भंग के उपरांत तो इस अप्रचार की रोकथाम होगी |
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