यह सत्वपरिक्षा है
यह पत्र दी.ज. कुलकर्णी ने महेशजी को लिखा था |
उन्होंने महेशजी को संबोधित करते हुए पत्र में लिखा कि महेशजी ने जो
लिखा था, सत्य ही था | उनके विचार उच्च थे | वे जब वहाँ के एक- एक व्यक्ति का त्याग
देखते, तब उन्हें पूरा विश्वास हो जाता था | उम्र कच्ची थी और परीक्षा में
बैठने के लिए जमकर पढाई कर रहे थे | शिक्षक मार्गदर्शक के प्रयत्नशील थे | परीक्षा
निकट आती तब सचिवालय से आदेश प्राप्त होता कि ,”परीक्षा के लिए पैरोल नही दी
जायेगी” | संपूर्ण जीवन पर दुष्परिणाम करनेवाली ये दुर्घटना को सब शांति से पी
जाते थे | इतना अत्यंत हुआ था , फिर भी सब हँसमुख थे | ये लोग तो धैर्य के पुतले
से प्रतीत होते थे |
एक महिला थी |
घर से चिट्ठी आती थी, “नन्हा- मुन्ना बीमार है ! बुखार में पुकारता रहता है” | पैरोल
के लिए प्रार्थना-पत्र भेजा जाता था, समर्पण जाते थे, परन्तु हाय सब निष्फल हो
जाते | फिर अपने ही मन में विचार उठते -
क्या उन्होंने इससे भी बढकर त्याग किया था ?
महेशजी को एक
घटना के माध्यम से समझाते हुए कुलकर्णी ने लिखा कि घर में सब बच्चे- बच्चे थे | सबसे
बड़ी लड़की 10-12 वर्ष की थी | बच्चो की माँ बिमारी हो गयी थी और स्वास्थ भी बिगड़
रहा था और तार पहुँचा, शीघ्र आइये | जब वे पहुँचे , तब गृहिणी , बच्चो पर प्रेम-वर्षा
करनेवाली , इहलोक चली गयी थी | ह्रदय को कचोटनेवादी अनेक घटनाए उन दीवारों पर छपी
थी | फिर भी सब शांत थे | धैर्यपूर्ण थे | क्योकि वे जानते थे कि वे सब निरपराध थे
, यह उनकी सत्वपरीक्षा हो रही थी |
अतः उन्हें आशा
थी कि किसी का भी अन्याय अधिक काल तक टिक नहीं सकता |
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