अंतरात्मा की हत्या
यह पत्र एक समर्पित सर्वोदयी कार्यकर्ता प्रभाकर शर्मा ने 11 अक्टूम्बर 1976 के दिन श्रीमती गाँधी (इंदिरा गाँधी ) को अपने आत्मदाह से पहले लिखा और 14 / 10 / 1976 को परवान में आत्मदहन कर लिया था | यह पत्र उन्होंने बंबई के मुख्यमंत्री और उनके मित्रो को भेजा था क्युकि वे जानते थे कि आपातकाल में इस तरह का पत्र लिखना भी अपराध था |
आपातकाल को निंदनीय , जंगली और धिककार्निय बताते हुए उन्होंने पत्र में लिखा कि श्रीमती गाँधी ने अपने हाथ में सत्ता बनाये रखने के लिए भारत को एक अँधेरी गुफा ( आपातकाल ) की ओर धकेल दिया था और इसके लिए उन्होंने पुलिस तथा सेना को जनता के खिलाफ प्रयोग किया | उन्होंने अपने में यह भी लिखा कि श्रीमती गाँधी को अपने अनुतापयुक्त ह्रदय से , भारत की जनता से उनके अक्षम्य अपराधो के लिए , माफ़ी मांगनी चाहिए और भावी पिढ़िया आपातकाल को हमेशा एक अपराध और इसका समर्थन करने वालो दोषी के रूप में देखेंगी |
आपातकाल के दौरान ईश्वर और मानवता को भूल केन्द्रीय सरकार ने “जयप्रकाश जिंदाबाद” कहने या उनका समर्थन करने पर लोगो को गिरफ्तार कर लिया और अखबारो से लेखन – स्वतंत्रता भी छीन ली और पूज्य विनोबाजी के आमरण अनशन के समाचार को भी दबा दिया गया | सारांश में कहा जाए तो श्रीमती गाँधी की मर्झी ही धर्मशास्त्र , इच्छा ही संस्कृति , गर्वोंमाद ही क़ानून , हुंकार ही न्याय और जो पाठ वे पढाये वही नीतिशास्त्र |
उन्होंने आपातकाल को स्वत्रंता और मानवता का गला घोटने वाला कदम बताया और गांधीजी के विचारो से मार्गदर्शन लेते हुए कहा कि स्वतंत्रता के बीना जीवन व्यर्थ है और देश को रचनात्मक कार्यो और अहिंसक शक्ति बनाने की भी बात कही थी |
अपने पत्र के माध्यम से उन्होंने देश की जनता से आग्रह भी किया कि शहरी वर्ग और ग्रामीण वर्ग को आपस में एक जुट होकर अहिंसक और रचनात्मक कार्यो में जुटना होगा |
अतः उनका बलिदान हमेशा स्वतंत्र और लोकतंत्र के लिए प्रेरणादायी रहेगा |