हमारी आपदाएँ तो कुछ भी नहीं
यशवंत
केलकर ने सौ. शशि को लिखा
यहाँ
चंद्रपुर , भण्डारा जिले के दूर – दूर के कुछ लोग स्थानबद्ध थे | उन्हें गत बारह
मासों में कोई भी मिलने नहीं आया | कारागृह ऐसा स्थान था कि जहा यदि दूसरो का दुःख
देखने लगे तो ज्ञात होता था कि आरे ! अपने दुःख तो अत्यल्प था | देखो न , धरणगाँव
के सुधाकरराव का पुत्र को ट्रक ने कुचल डाला | मेहेकर के अनंतराव बाजड़ का नौ वर्ष
का पुत्र दोपहर में विद्यालय से आते – आते
एकाएक मृत्यु को प्राप्त हुआ | किसी के माता – पिता , काका , चाचा , भाई आदि इस दुनिया
से चले गये |
थाना
के कारागार में पांडुरंगपंत क्षीरसागर को दिल का दौरा आया और क्षणभर में वे परलोक सिधारे
| अनेको के घर अव्यवस्थित उदध्वस्त तक हो गये | किसी मिसाबद्ध की माँ को स्थानिक पुलिस
ने कहा , “सुन ले बुढ़िया , अब तेरा पुत्र जीवित तो क्या , तुम मरा हुआ भी उसे देख नहीं
पाओगी” | बेचारी वृद्धा उसी कल्पना के आघात से मर गयी ......
यशवंत केलकर के अनुसार , तात्पर्यं यह कि अन्यो की तुलना में हम लोगों पर आपदाए बहुत कम थी | पाँच जनों के उनके परिवार से चार सदस्य एक दूसरे को समझाने , धैर्य देने , आधार आनंद देने के लिए एक जगह थी | सब एकजुट होकर परिश्रम – प्रगति कर थे | और फिर इन बच्चो को सौ. शशि जैसे धैर्यस्तंभरूपा वात्सल्यमूर्ति माँ प्राप्त हुई थी |
चारों के बल पर यशवंत केलकर भी यहाँ का बारह मास का काल मौजमजे , परिश्रम हास्यविनोद , आनंद में बिताया था | इन बातों में कभी खण्ड नही पड़ा | ये दिन भी चले जायेंगे .......