Sunday, 19 January 2025

पारिवारिक पत्र : यशवंत केलकर द्वारा सौ. शशि को लिखा पत्र

 हमारी आपदाएँ तो कुछ भी नहीं

यशवंत केलकर ने सौ. शशि को लिखा

यहाँ चंद्रपुर , भण्डारा जिले के दूर – दूर के कुछ लोग स्थानबद्ध थे | उन्हें गत बारह मासों में कोई भी मिलने नहीं आया | कारागृह ऐसा स्थान था कि जहा यदि दूसरो का दुःख देखने लगे तो ज्ञात होता था कि आरे ! अपने दुःख तो अत्यल्प था | देखो न , धरणगाँव के सुधाकरराव का पुत्र को ट्रक ने कुचल डाला | मेहेकर के अनंतराव बाजड़ का नौ वर्ष का पुत्र दोपहर में विद्यालय  से आते – आते एकाएक मृत्यु को प्राप्त हुआ | किसी के माता – पिता , काका , चाचा , भाई आदि इस दुनिया से चले गये |

थाना के कारागार में पांडुरंगपंत क्षीरसागर को दिल का दौरा आया और क्षणभर में वे परलोक सिधारे | अनेको के घर अव्यवस्थित उदध्वस्त तक हो गये | किसी मिसाबद्ध की माँ को स्थानिक पुलिस ने कहा , “सुन ले बुढ़िया , अब तेरा पुत्र जीवित तो क्या , तुम मरा हुआ भी उसे देख नहीं पाओगी” | बेचारी वृद्धा उसी कल्पना के आघात से मर गयी ......

यशवंत केलकर के अनुसार , तात्पर्यं यह कि अन्यो की तुलना में हम लोगों पर आपदाए बहुत कम थी | पाँच जनों के उनके परिवार से चार सदस्य एक दूसरे को समझाने , धैर्य देने , आधार आनंद देने के लिए एक जगह थी | सब एकजुट होकर परिश्रम – प्रगति कर थे | और फिर इन बच्चो को सौ. शशि जैसे धैर्यस्तंभरूपा वात्सल्यमूर्ति माँ प्राप्त हुई थी |

चारों के बल पर यशवंत केलकर भी यहाँ का बारह मास का काल मौजमजे , परिश्रम हास्यविनोद , आनंद में बिताया था | इन बातों में कभी खण्ड नही पड़ा | ये दिन भी चले जायेंगे ....... 

Saturday, 18 January 2025

पारिवारिक पत्र : अजितकुमार द्वारा अपनी बहिन को लिखा पत्र

तीर्थक्षेत्र या साधु का आश्रम

अजितकुमार ने गुलबर्गा कारागार से 6 / 5 / 1976 को अपनी बहिन को जो पत्र लिखा था उसका यह परिच्छेद बहुत मार्मिक था :-

वहा तो वास्तव में खनखनाती बेड़ियों का , बड़े – बड़े तालों का , सकीचो का और दीवारों का साम्राज्य था | वहा के वातावरण में भारी हथकड़ियाँ , न खुलनेवाले ताले , न झुकनेवाले सीकचे और रोती सूरत वाली दीवारों के कारण म्लानता बनी रहती | परंतु उन सब ने मिलकर यह सब कुछ एकदम उल्टा कर दिया था | अब वहाँ , प्रातः स्मरण होता था , प्रभाती गायी जाती थी , वेदमंत्रो के उदघोष सुनाई पड़ते थे | कही सूर्यनमस्कार , कही मातृवंदन , चर्चा , कही पूजापाठ , आसन , प्राणायाम , ध्यानधारणा , खेल , चहलकदमी , अध्ययन – अध्यापन , भाषण – प्रवचन ...... यही सब दिखाई दे रहा था |

किसी को  भी भ्रम हो सकता था कि वे कहा आ गये  थे ,  यह कोई तीर्थक्षेत्र था या साधु का आश्रम था ? 

Friday, 3 January 2025

स्वयंसेवको के आपस में लिखे पत्र : दी.ज. कुलकर्णी द्वारा महेशजी को लिखा पत्र

 यह सत्वपरिक्षा है

यह पत्र दी.ज. कुलकर्णी ने महेशजी को लिखा था |

उन्होंने महेशजी को संबोधित करते हुए पत्र में लिखा कि महेशजी ने जो लिखा था, सत्य ही था | उनके विचार उच्च थे | वे जब वहाँ के एक- एक व्यक्ति का त्याग देखते, तब उन्हें पूरा विश्वास हो जाता था | उम्र कच्ची थी और परीक्षा में बैठने के लिए जमकर पढाई कर रहे थे | शिक्षक मार्गदर्शक के प्रयत्नशील थे | परीक्षा निकट आती तब सचिवालय से आदेश प्राप्त होता कि ,”परीक्षा के लिए पैरोल नही दी जायेगी” | संपूर्ण जीवन पर दुष्परिणाम करनेवाली ये दुर्घटना को सब शांति से पी जाते थे | इतना अत्यंत हुआ था , फिर भी सब हँसमुख थे | ये लोग तो धैर्य के पुतले से प्रतीत होते थे |

एक महिला थी | घर से चिट्ठी आती थी, “नन्हा- मुन्ना बीमार है ! बुखार में पुकारता रहता है” | पैरोल के लिए प्रार्थना-पत्र भेजा जाता था, समर्पण जाते थे, परन्तु हाय सब निष्फल हो जाते | फिर अपने ही मन में विचार उठते -  क्या उन्होंने इससे भी बढकर त्याग किया था ?

महेशजी को एक घटना के माध्यम से समझाते हुए कुलकर्णी ने लिखा कि घर में सब बच्चे- बच्चे थे | सबसे बड़ी लड़की 10-12 वर्ष की थी | बच्चो की माँ बिमारी हो गयी थी और स्वास्थ भी बिगड़ रहा था और तार पहुँचा, शीघ्र आइये | जब वे पहुँचे , तब गृहिणी , बच्चो पर प्रेम-वर्षा करनेवाली , इहलोक चली गयी थी | ह्रदय को कचोटनेवादी अनेक घटनाए उन दीवारों पर छपी थी | फिर भी सब शांत थे | धैर्यपूर्ण थे | क्योकि वे जानते थे कि वे सब निरपराध थे , यह उनकी सत्वपरीक्षा हो रही थी |

अतः उन्हें आशा थी कि किसी का भी अन्याय अधिक काल तक टिक नहीं सकता |

बालासाहब देवरस द्वारा इंदिराजी को लिखे पत्र

 संघ – कार्य का स्वरुप

श्री बालासाहब देवरस के इंदिराजी को लिखे गये पत्र |

15 अगस्त 1975 को देहली के लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करते हुए जो भाषण श्रीमती गाँघी ने दिया उसे देवरसजी ने गौर से सुना | 8 जुलाई 1975 को केंद्र सरकार ने एक विशेष आदेश निकालकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया था | प्रतिबंध के संबंध में अखबारों में से जो जानकारी मिली थी उससे ऐसा मालूम होता था कि संघ के, उसके स्वयंसेवकों के एवं उसके जिम्मेदार कार्यकर्ताओं के कारनामे देश की अंतर्गत सुरक्षितता , सार्वजनिक शांतता एवं व्यवस्था में बधास्वरूप थे |

संघ पर कुछ लोग , कभी- कभी आरोप करते थे | उन सभी आरोपों का खंडन करना इस पत्र में संभव नही था , फिर भी यह स्पष्ट करना तो आवश्यक था कि संघ ने कभी भी हिंसाचार किये नही और ना ऐसी सिख संघ ने किसी को दी | देश की आतंरिक सुरक्षा , सार्वजनिक शांतता एवं व्यवस्था को खतरा पहुँचे, ऐसा कोई भी काम कभी भी रा.स्व.संघ का हितेशी नही था | देश में दंगे , फसाद की अनेक घटनाए हुई किन्तु उनमे संघ के स्वयंसेवकों का हाथ था , ऐसा किसी भी न्यायालय के निर्णय से अथवा सरकार द्वारा नियुक्त किसी आयोग की रिपोर्ट से प्रतीत नहीं होता था |

संघ का कार्य समूचे भारत में सब दूर फैला हुआ था | उसमे समाज के सभी वर्गों , स्तरों के लोग थे | अनेक त्यागी कार्यकर्त्ता संघ में थे | संघ का सारा कार्य निःस्वार्थ भावना पर आधारित था | संघ की ऐसी शक्ति का योजनापूर्वक उपयोग देश के उत्थान के लिए होना जरुरी था |

राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ पर साम्प्रदायिकता का आरोप करने वाले भी कुछ लोग थे , पर उनका यह आरोप भी निराधार था | संघ में मुसलमानों से द्वेष करना सिखाया जाता था , यह कहना भी सर्वथा असत्य था | संघ में किसी भी धर्म के संबंध में अनुचित शब्द का भी प्रयोग नहीं होता था , इतना ही नही बल्कि “सर्व धर्म संभाव” यानि “एकंसद विप्रा बहुधा वदन्ति” – यह जो हिन्दुओ की विशेषता थी, उसी को संघ सर्वोपरि मानता था | सब को अपनी उपासना -पद्धति की स्वतंत्रता रहे, ऐसी संघ की धारणा थी | सभी धर्मी लोगो से संघ के अनेक स्वयंसेवकों के अच्छे आत्मीयतापूर्ण संबंध थे | अतः राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ ने अपना कार्य हिन्दू समाज तक ही मर्यादित रखा था |

हिन्दू समाज के प्रत्येक व्यक्ति को उत्तम नागरिक, देशभक्त एवं सच्चरित्र बनाने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निःस्वार्थ भाव से कर रहा था | अपने ही शासन में उस पर प्रतिबंध लगे , यह तो मात्र दैवदुर्विलास था |

पत्र के अंत में , संघ के संबंध में पूर्वाग्रह छोड़कर श्रीमती गाँधी विचार करे , ऐसी देवरसजी ने प्रार्थना की थी | प्रजातंत्रीय देश में संगठन स्वातंत्र्य का जो मूलभूत अधिकार होता था, उसको ध्यान में लेकर , रा.स्व.संघ पर जो प्रतिबंध थे उसे हटाये , ये भी उन्होंने निवेदन किया था |       

Wednesday, 1 January 2025

विदर्भ साहित्य सम्मलेन के अध्यक्ष राम शेवालकर द्वारा विनोबाजी को लिखा पत्र

 आपके नाम पर अप्रचार

वाणी ( विदर्भ ) महाविद्यालय के प्राचार्य , विदर्भ साहित्य सम्मलेन के अध्यक्ष राम शेवालकर ने विनोबाजी को पत्र लिखा :-

इसके पूर्व भेजे विनोबाजी के पत्र की पहुँच उन्हें प्राप्त हुई | वे कृतज्ञ थे | उस पत्र के आशयानुसार 25 दिसम्बर को विनोबाजी का मौन भंग होने वाला था | अन्य अनेको के सदृश राम शेवालकर भी उसी क्षण की राह देख रहे थे | उनके ऋषितुल्य मार्गदर्शन की देश को बहुत अधिक आवश्यकता थी |

जब वे महाराष्ट्र राज्य परिवहन मंडल की मोटर बस से यात्रा कर रहे थे | उसमे उन्हें विनोबाजी के नाम पर लिखे कुछ वचन दिखाई दिये , वे वचन इस प्रकार थे :-

1.      1. प्रधान मंत्री के क्रांतिकारी कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु , आइये , हम अथक प्रयास करे |

2.      2.  काम अधिक बोलना कम | समय की मांग है – अनुशासन और कार्यदक्षता | जो अफवाहे फैलाते      है , उन्हें देश के शत्रु ही मानिए |

3.      3. आपातकाल का अर्थ है – अनुशासन पर्व | जनतंत्र का रक्षण ही आपातकाल का हेतु है | सरकारी      नौकरी जनता का महान सेवन है |

-    विनोबा भावे

जो भी प्रकाशित हुआ था वह सब “विनोबा साहित्य” में राम शेवालकर ने पढा था और वे “विनोबा साहित्य” को श्रद्धा के साथ पढते थे | इसलिए उनके सम्मुख यह प्रश्न उपस्थित हुआ था | क्या ऊपर के सब वचन विनोबाजी के श्रीमुख से निकले थे ? उन्हें लगता था नही, ये वचन विनोबाजी के नही थे तो उनके नाम पर उन्हें प्रकाशित तथा प्रसृत करना, उनके विभूतिमत्व का दुरूपयोग करना नही था क्या ?

अतः उन्हें आशा थी कि विनोबाजी के मौन – भंग के उपरांत तो इस अप्रचार की रोकथाम होगी |