शास्त्री जी का निधन
अगस्त
1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया था | शास्त्री जी ने दृढ़ता तथा सुझभूझ का
परिचय देकर देश को युद्ध में विजय दिलायी थी | इससे उनकी लोकप्रियता आकाश को छूने
लगी परन्तु देश के दुर्भाग्य से ताशकंद में रहस्यपूर्ण परिस्थिति में दिनांक 11
जनवरी 1966 को उनकी मृत्यु हो गयी |
श्रीमती
गांधी को खोया हुआ अवसर फिर से उपलब्ध हुआ था | इस बार कांग्रेस के अध्यक्ष कामराज
और उनकी सिंडिकेट की पसंद एक मात्र श्रीमती गाँधी थी | उन्हें विश्वास था कि जिसे
राममनोहर लोहिया ‘गूंगी गुड़िया’ कहते थे, वह उनके काबू में रह सकेगी | चुनाव हुआ
और बहुत अधिक मतों से मोरारजी भाई की पराजय हुई |
कामराज
नाडार तथा अन्य पुराने कांग्रेस,जिन्हें ‘सिंडिकेट’ नाम दिया था,अपनी विजय पर
प्रसन्न भी हुए ,प्रधानमंत्री चुने जाने में इंदिराजी को छः राज्यों के
मुख्यमंत्री का सहयोग मिला था | किन्तु जो मुख्यमंत्री उन्हें प्रधानमंत्री पद पर
बैठा सकते है , वे उन्हें हटा भी सकते है | यह सोचकर उन्होंने सर्वप्रथम उन्ही मुख्यमंत्रियों
की छटनी की | पंडित द्वारिकाप्रसाद मिश्र,मोहनलाल सुखाडिया आदि इसी के उदाहरण है |
श्रीमती
इंदिरा गांधी जी इसी निश्चय के साथ प्रधानमंत्री बनी थी कि,”मैं इन नेताओं की
कठपुतली नही बनूंगी और अपना पूर्ण वर्चस्व प्रस्थापित करुँगी |”
अतः
स्वयं को राजनितिपटु समझनेवाले ये नेता न तो नेहरू खानदान को समझ सके और न
इंदिराजी को | अपनी भूल का फल उन्हें थोड़े ही दिनों में दिखाई देने लगा था |